राज्यपाल की तरह : यीशु मसीह के नाम में ‘मसीह’ का क्या अर्थ है?

मैं कई बार लोगों से पूछता हूँ, कि यीशु का अन्तिम नाम क्या था। अक्सर वे उत्तर देते हैं,

“मैं सोचता हूँ, कि उसका अन्तिम नाम ‘मसीह’ था, परन्तु मैं इसके प्रति निश्चित नहीं हूँ।”

तब मैं पूछता हूँ,

“यदि यह सत्य है तो जब यीशु एक लड़का ही था तब क्या यूसुफ मसीह और मरियम मसीह छोटे यीशु मसीह को अपने साथ बाजार ले जाते थे?”

इसे इस तरह  से कहें, उन्होंने जान लिया था, कि यीशु का अन्तिम नाम ‘मसीह’ नहीं था। इस तरह से, अब ‘मसीह’ क्या है? यह कहाँ से आया है? इसका क्या अर्थ है? कइयों के लिए आश्चर्य की बात है, कि ‘मसीह’ एक ऐसी पदवी है, जिसका अर्थ ‘शासक’ या ‘शासन’ से है। यह पदवी उस राज की तरह नहीं है, जैसी कि ब्रिटिश राज में पाई जाती है, जिसने दक्षिण एशिया में कई दशकों तक राज किया था।

भाषान्तरण बनाम लिप्यन्तरण

इसे देखने के लिए, हमें सबसे पहले अनुवाद अर्थात् भाषान्तरण के कुछ सिद्धान्तों को देखना होगा। अनुवादक कभी कभी विशेष रूप से नाम और शीर्षक के लिए, अर्थ की अपेक्षा उसी तरह की ध्वनि  वाले शब्दों को भाषान्तरण के  लिए चुन लेते हैं। इसे लिप्यन्तरण  के नाम से जाना जाता है। उदाहरण के लिए, कुम्भ मेला हिन्दी के कुम्भ मेला का अंग्रेजी लिप्यन्तरण है। यद्यपि शब्द मेला का अर्थ ‘प्रदर्शनी’ या ‘त्योहार’ से है, परन्तु इसे अक्सर अंग्रेजी में समान ध्वनि वाले शब्द अर्थात् कुम्भ प्रदर्शनी की अपेक्षा कुम्भ मेला के रूप में ही उपयोग कर लिया जाता है। क्योंकि बाइबल के लिए, अनुवादकों को यह निर्णय लेना पड़ता है,  नाम और पदवियाँ सर्वोत्तम रूप से अनुवादित भाषा में भाषान्तरण (अर्थ के द्वारा) या लिप्यन्तरण (ध्वनि के द्वारा) किस के माध्यम उचित अर्थ देंगे। इसके लिए कोई विशेष नियम नहीं है।

सेप्तुआजिन्त

बाइबल सबसे पहले 250 ईसा पूर्व में तब अनुवादित हुई थी, जब इब्रानी पुराने नियम को यूनानी भाषा – उस समय की अन्तरराष्ट्रीय भाषा में भाषान्तरण किया गया था। इस भाषान्तरण को सेप्तुआजिन्त अर्थात् सप्तति अनुवाद (या LXX) के नाम से जाना जाता है, और यह बहुत ही अधिक प्रभावशाली है। क्योंकि नया नियम यूनानी भाषा में ही लिखा गया था, इसलिए इसमें दिए हुए पुराने नियम के कई उद्धरणों को सेप्तुआजिन्त से ही लिया गया है।

सेप्तुआजिन्त में भाषान्तरण एवं लिप्यन्तरण

नीचे दिया हुआ चित्र इसी प्रक्रिया को दिखाता है और यह कैसे आधुनिक-दिन की बाइबल को प्रभावित करता है

मूल भाषाओं से आधुनिक-दिन की बाइबल का भाषान्तर का प्रवाह
मूल भाषाओं से आधुनिक-दिन की बाइबल का भाषान्तर का प्रवाह

मूल इब्रानी पुराना नियम (1500 से लेकर – 400 ई.पू. तक लिखा गया) को चित्र-खण्ड के # 1 में दिखाया गया है। क्योंकि सेप्तुआजिन्त 250 ईसा पूर्व में लिखा गया था इसलिए इब्रानी –> यूनानी भाषान्तर को चित्र-खण्ड #1 से #2 की ओर जाते हुए तीर से दिखाया गया है। नया नियम यूनानी में लिखा गया था ( (50–90 ईस्वी सन्), इसलिए इसका अर्थ यह हुआ कि #2 में दोनों ही अर्थात् पुराना और नया नियम समाहित है। चित्र का निचला आधा हिस्सा (#3) बाइबल का एक आधुनिक भाषा में किया हुआ भाषान्तरण है। यहाँ तक पहुँचने के लिए पुराने नियम को मूल इब्रानी भाषा (1 -> 3) और नए नियम को यूनानी (2 -> 3) में से भाषान्तरित किया गया है। जैसा कि पहले बताया गया, अनुवादकों को नामों और पदवियों को निर्धारित करना होता है। इसे नीला तीरों के प्रतीक चिन्हों के साथ लिप्यन्तरण और भाषान्तरण के शब्दों के साथ यह दर्शाते हुए दिखाया गया है, कि अनुवादक किसी भी दृष्टिकोण को ले सकता है।

‘मसीह’ की उत्पत्ति

अब हम ऊपर दी हुई प्रक्रिया का अनुसरण करेंगे, परन्तु इस समय हम हमारे ध्यान को ‘मसीह’ शब्द के ऊपर केन्द्रित करेंगे।

बाइबल में शब्द 'मसीह' कहाँ से आया है?
बाइबल में शब्द ‘मसीह’ कहाँ से आया है?

हम देख सकते हैं, कि मूल इब्रानी पुराने नियम में पदवी ‘מָשִׁיחַ’ (मसीहीयाख़) दी हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘अभिषिक्त या प्रतिष्ठित’ व्यक्ति से है जैसे कि एक राजा या शासक इत्यादि। पुराने नियम के समयावधि में इब्रानी राजाओं को राजा बनने से पहले (अनुष्ठानिक रीति से तेल मल कर) अभिषिक्त किया जाता था, इस प्रकार वे अभिषिक्त  या मसीहीयाख़  हो जाते थे। तब वे शासक बन जाते थे, परन्तु उनका शासन परमेश्‍वर के स्वर्गीय शासन की अधीनता में, उसकी व्यवस्था के अनुसार होता था। इस भावार्थ में, पुराने नियम का एक इब्रानी राजा दक्षिण एशिया के भूतपूर्व राज्यपाल के जैसे होता था। राज्यपाल दक्षिण एशिया के ब्रिटिश क्षेत्रों के ऊपर शासन करता था, परन्तु वह ऐसा ब्रिटेन की सरकार की अधीनता में, इसकी व्यवस्था का पालन करते हुए करता है।

पुराने नियम ने एक निश्चित रूप से विशेष मसीहायाख़  के आने की भविष्यद्वाणी (‘निश्चित’ शब्द के साथ) को किया था, जो एक विशेष राजा होगा। जब सेप्तुआजिन्त अर्थात् सप्तति अनुवाद को 250 ईस्वी सन् में भाषान्तरित किया गया, तब अनुवादको ने यूनानी भाषा में समानार्थ शब्द को क्रिओ  पर आधारित हो, Χριστός (क्रिस्टोस  जैसी ध्वनि वाले) का चुनाव किया, जिसका अर्थ अनुष्ठानिक रूप से तेल मलना होता है। इस तरह से इब्रानी भाषा का शब्द ‘मसीहीयाख़’ का भाषान्तरण अर्थ के द्वारा (न कि ध्वनि के द्वारा लिप्यन्तरण करते हुए) Χριστός (क्रिस्टोस  के उच्चारण) के रूप में यूनानी सेप्तुआजिन्त में किया गया था। नए नियम के लेखक निरन्तर शब्द क्रिस्टोस का उपयोग यीशु की पहचान के लिए करते रहे, जिसकी भविष्यद्वाणी ‘मसीहीयाख़’ के रूप में की गई थी।

परन्तु जब हम यूरोप की भाषाओं की बात करते हैं, तब हम पाते हैं, कि यूनानी शब्द ‘क्रिस्टोस’  के सामानार्थ कोई भी स्पष्ट शब्द नहीं पाया गया इसलिए इसका भाषान्तरण ‘क्राईस्ट’ अर्थात् मसीह में कर दिया गया। शब्द ‘मसीह’ पुराने नियम पर आधारित इब्रानी से यूनानी में भाषान्तरित  होते हुए और तब यूनानी से आधुनिक भाषाओं में लिप्यन्तरित  होते हुए एक बहुत ही विशेष शब्द है। इब्रानी पुराने नियम का भाषान्तरण सीधे ही कई आधुनिक भाषाओं में किया गया है और अनुवादकों ने मूल इब्रानी शब्द ‘मसीहीयाख़’ के सम्बन्ध में विभिन्न निर्णयों को लिया है। कुछ बाइबल शब्द ‘मसीहीयाख़’ का लिप्यन्तरण ‘मसीह’ शब्द के द्वारा रूपान्तरित करते हुए करती हैं, अन्य इसका अनुवाद ‘अभिषिक्त’ के अर्थ के द्वारा करती हैं, और अन्य उसका लिप्यन्तरण ‘क्राईस्ट’ शब्द के द्वरा रूपान्तरित करते हुए करती हैं। क्राईस्ट या ख्रीस्त (मसीह) के लिए हिन्दी शब्द को अरबी से लिप्यन्तरित किया गया है, जो बदले में मूल इब्रानी भाषा से लिप्यन्तरित हुआ था। इसलिए ‘मसीह’ का उच्चारण मूल इब्रानी भाषा के साथ बहुत निकटता से है, जबकि अन्य शब्द क्राईस्ट का लिप्यन्तरण अंग्रेजी ‘क्राईस्ट’ से हुआ है और इसकी ध्वनि ‘क्राइस्त’ जैसी है। क्राईस्ट (ख्रीष्टको) के लिए नेपाली शब्द का लिप्यन्तरण यूनानी क्रिस्टोस  से हुआ है और इसलिए इसे ख्रीष्टको  शब्द से उच्चारित किया जाता है।

क्योंकि हम पुराने नियम में शब्द ‘मसीह’ को सामान्य रूप से नहीं देखते हैं, इसलिए इसका सम्बन्ध पुराने नियम से सदैव प्रगट नहीं होता है। परन्तु इस अध्ययन से हम जानते हैं, कि बाइबल आधारित ‘क्राईस्ट’ = ‘मसीह’ = ‘अभिषिक्त’ सभी एक ही हैं और यह एक विशेष पदवी थी।

1ली सदी में प्रत्याशित मसीह

इस बोध के साथ, आइए सुसमाचारों से कुछ विचारों को प्राप्त करें। नीचे राजा हेरोदेस की तब की प्रतिक्रिया दी गई है, जब ज्योतिषी यहूदियों के राजा से मुलाकात करने के लिए उसके पास आए, जो कि क्रिसमिस की कहानी का एक बहुत अच्छी तरह से जाना-पहचाना हुआ हिस्सा है। ध्यान दें, मसीह के लिए ‘निश्चित’ वाक्य का उपयोग किया गया है, यद्यपि यह विशेष रूप से यीशु के बारे में उद्धृत नहीं कर रहा है।

यह सुनकर राजा और उसके साथ सारा यरूशलेम घबरा गया। तब उसने लोगों के सब प्रधान याजकों और शास्त्रियों को इकट्ठा करके उनसे पूछा मसीह का जन्म कहाँ होना चाहिए। (मत्ती 2:3-4)

आप इस निश्चित वाक्य में ‘मसीह’ के विचार को देख सकते हैं, जिसे हेरोदेस और उसके प्रधानों के मध्य में अच्छी तरह से समझ लिया गया था – यहाँ तक कि इससे पहले कि यीशु का जन्म होता – और यह यहाँ पर विशेष रूप से यीशु के लिए उद्धृत हुए बिना उपयोग हुआ है। यह दिखाता है, कि ‘क्राईस्ट’ अर्थात् मसीह पुराने नियम में से आएगा, जो की 1ली सदी में लोगों के द्वारा (जैसे कि हेरोदेस और उसके प्रधानों के द्वारा) यूनानी के सेप्तुआजिन्त में पाया जाने वाला एक सामान्य पठन् था। ‘क्राईस्ट’  एक नाम नहीं, अपितु पदवी थी (और आज भी है), जो एक शासक या राजा का संकेत देती है। इसलिए ही हेरोदेस ‘परेशान था’ क्योंकि उसने एक और राजा होने की सम्भावना को स्वयं के लिए खतरा महसूस किया। हम इस हास्यास्पद विचार का इन्कार कर सकते हैं, कि ‘मसीह’ मसीही विश्‍वासियों के द्वारा आविष्कृत किया गया था या यह किसी बड़े व्यक्ति जैसे 300 ईस्वी सन् में सम्राट कॉन्सटेनटाईन के द्वारा आविष्कृत किया गया था। यह पदवी हजारों वर्षों पहले से किसी भी मसीही विश्‍वासी के आगमन या कॉन्सटेनटाईन के द्वारा शासन करने से बहुत पहले से ही प्रचलन में थी।

मसीह के अधिकार का विरोधाभास

यीशु के आरम्भिक अनुयायियों को यह विश्वास हो गया था कि यही यीशु इब्रानी वेदों अर्थात् बाइबल में भविष्यवाणी किया गया आने वाला मसीह था, जबकि अन्य लोगों ने इस मान्यता का विरोध किया था।

क्यों?

इसका उत्तर प्रेम या शक्ति के आधार पर शासन के बारे में विरोधाभास के रूप में पाया जाता है। राज का अर्थ ब्रिटिश शासक को भारत पर शासन करने का अधिकार था। परन्तु ब्रिटेन ने भारत पर शासन करने का अधिकार इसलिए प्राप्त किया क्योंकि राज या शासन सबसे पहले सैन्य शक्ति के रूप में आया था और इसने शासन को अपने शाक्ति के माध्यम से बाहरी रूप से लागू किया था। जनता राज या शासन से प्रेम नहीं करती थी और गांधी जैसे नेताओं के माध्यम से, अंततः ब्रिटिश राज या शासन को समाप्त कर दिया गया।

यीशु के रूप में मसीह अधीनता की मांग करने के लिए नहीं आया था, यद्यपि उसके पास इसका अधिकार था। वह प्रेम या भक्ति पर आधारित एक शाश्वतकालीन राज्य की स्थापना करने के लिए आया था, और इसके लिए आवश्यक था कि एक ओर सत्ता और अधिकार और दूसरी ओर प्रेम का विरोधाभास आपस में एक दूसरे से मिल जाए। इब्रानी ऋषियों ने इस विरोधाभास की खोज की ताकि हमें ‘मसीह’ के आने को समझने में सहायता मिल सके। हम इब्रानी वेदों में ‘मसीह’ के पहले प्रगटीकरण से उनकी अंतर्दृष्टियों का अनुसरण करते हैं, जो इब्रानी राजा दाऊद से लगभग 1000 ईसा पूर्व में आई थीं।