यीशु कार सेवक के रूप में कार्य करता है – अयोध्या की तुलना में अधिक समय

अयोध्या में लम्बे समय तक चलने वाला और कड़वा झगड़ा एक नए मील के पत्थर तक पहुँच गया है, जब इसने न्यूयॉर्क शहर में दूर तक AsAmNews की रिपोर्ट के द्वारा कोलाहल को उत्पन्न किया। अयोध्या विवाद एक सैकड़ों वर्ष पुराना राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक झगड़ा है, जो एक स्थान के नियन्त्रण पर केन्द्रित है, जिसे पारंपरिक रूप से राम (राम जन्मभूमि) के जन्मस्थान के रूप में माना जाता है, जहाँ पर पहले से ही बाबरी मस्जिद बनी हुई है।

बाबरी मस्जिद के शिलालेखों के अनुसार, प्रथम मुगल सम्राट, बाबर ने इसे 1528–29 में बनवाया था। परन्तु बाबरी मस्जिद सदियों से विवादों के घेरे में रही है क्योंकि कई लोगों का मानना ​​था कि बाबर ने इसे राम के जन्म स्थान पर बने हुए मन्दिर के खंडहर पर बनाया था। सदियों से चला आ रहा झगड़ा, अक्सर हिंसक दंगों और गोलीबारी में परिवर्तित हो जाता था।

अयोध्या में कार सेवक

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और भारतीय जनता पार्टी (बी जे पी) द्वारा आयोजित 1992 रैली में 150 000 कार सेवक, या धार्मिक स्वयंसेवक एकत्र हुए। इन कारसेवकों ने प्रदर्शन के दौरान बाबरी मस्जिद को नष्ट कर दिया। मस्जिद के नाश के साथ ही पूरे भारत में दंगे भड़के। बंबई में अनुमानित 2000 लोग मारे गए थे।

तब से 2019 तक संबंधित झगड़ा अदालतों के माध्यम से देश की राजनीति को अपने भँवर में लपेटे हुए, और सड़कों पर दंगे के द्वारा आगे बढ़ता रहा। राम मंदिर का निर्माण आरम्भ करने के लिए कार सेवकों की मौजूदगी ने विहिप को गति प्रदान की।

अंत में 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम अपील के मामले में अपना निर्णय को सुनाया। इसने फैसला सुनाया कि भूमि टैक्स रिकॉर्ड के आधार पर सरकार की है। इसने आगे आदेश दिया कि एक ट्रस्ट को हिंदू मंदिर बनाने के लिए भूमि प्राप्त होगी। सरकार को मस्जिद के लिए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को भूमि का एक और स्थान आवंटित करना होगा।

5 फरवरी 2020 को, भारत सरकार ने घोषणा की कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करेगा। 5 अगस्त, 2020 के भूमि-पूजन समारोह का उद्घाटन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था। मंदिर निर्माण के आरम्भ के तनाव को न्यूयॉर्क शहर में महसूस किया गया था।

कार सेवक  मूल रूप से एक ऐसे व्यक्ति के लिए सिख धर्म का शब्द है जो धार्मिक कारणों के लिए अपनी सेवाओं को स्वतंत्र रूप से प्रदान करे। यह शब्द संस्कृत के कार (हाथ) और सेवक (नौकर) शब्दों से लिया गया है। अयोध्या झगड़े में, विहिप द्वारा कार सेवकों को संगठित किया गया था, जिन्होंने इस धारणा को सिख परंपरा से पाया था।

एक (भिन्न) कार सेवक के रूप में यीशु

परन्तु अयोध्या के इस झगड़े से बहुत पहले, यीशु ने कार सेवक की भूमिका, एक विरोधी के साथ एक झगड़े की घोषणा करते हुए भी निभाई थी, जिसने मानव जीवन के कई क्षेत्रों में फिर से प्रवेश करते हुए, लोगों के बीच दरार को उत्पन्न किया था जो आज भी बनी हुई है। यह झगड़ा भी एक मंगलकारी मंदिर पर केन्द्रित था। परन्तु यह पास के एक गाँव में आरम्भ हुआ जब यीशु, एक कार सेवक बनकर, स्वेच्छा से मित्रों की सहायता करने के लिए तैयार हो गया था। इस तरह के कार्य ने कई घटनाओं को जन्म दिया, इतिहास को बदल दिया और अयोध्या के झगड़े की तुलना में हमारे जीवन को अधिक प्रभावित किया। यीशु की कार सेवक संबंधी गतिविधियों से उसके केन्द्रीय मिशन का पता चलता है।

यीशु का मिशन क्या था?

यीशु ने कई आश्चर्यकर्मों को प्रगट किया, चंगाई के कामों को किया और शिक्षा दी। परन्तु यह प्रश्न अभी भी उसके शिष्यों, अनुयायियों और यहाँ तक ​​कि उसके शत्रुओं के मन में बना हुआ था: कि वह क्यों आया था? पिछले कई ऋषियों, जिनमें मूसा ने भी शक्तिशाली आश्चर्यकर्मों को किया था। चूँकि मूसा ने पहले से ही धर्म संबंधी व्यवस्था को दिया था, और यीशु “व्यवस्था को खत्म करने नहीं आया था”, इसलिए उसका मिशन क्या था?

यीशु का एक मित्र बहुत अधिक बीमार हो गया। उनके शिष्यों को अपेक्षा थी कि यीशु अपने मित्र को चँगा करेगा, क्योंकि उसने कई अन्य लोगों को चँगा किया था। सुसमाचार लिपिबद्ध करता है कि कैसे उसने अपने मित्र की सहायता मात्र उसे चँगा करने के स्थान पर स्वेच्छा से अधिक गहरे तरीके से की। यह प्रकाशित करता है कि कार सेवक के रूप में स्वेच्छा से उसका मिशन क्या करने के लिए था। यहाँ विवरण दिया गया है।

यीशु ने मृत्यु का सामना किया

रियम और उस की बहिन मारथा के गांव बैतनिय्याह का लाजर नाम एक मनुष्य बीमार था।
2 यह वही मरियम थी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पांवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाजर बीमार था।
3 सो उस की बहिनों ने उसे कहला भेजा, कि हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है।
4 यह सुनकर यीशु ने कहा, यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।
5 और यीशु मारथा और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता था।
6 सो जब उस ने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहां दो दिन और ठहर गया।
7 फिर इस के बाद उस ने चेलों से कहा, कि आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।
8 चेलों ने उस से कहा, हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्थरवाह करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है?
9 यीशु ने उत्तर दिया, क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता है, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है।
10 परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उस में प्रकाश नहीं।
11 उस ने ये बातें कहीं, और इस के बाद उन से कहने लगा, कि हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं।
12 तब चेलों ने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।
13 यीशु ने तो उस की मृत्यु के विषय में कहा था: परन्तु वे समझे कि उस ने नींद से सो जाने के विषय में कहा।
14 तब यीशु ने उन से साफ कह दिया, कि लाजर मर गया है।
15 और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूं कि मैं वहां न था जिस से तुम विश्वास करो, परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।
16 तब थोमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपने साथ के चेलों से कहा, आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें।
17 सो यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं।
18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर था।
19 और बहुत से यहूदी मारथा और मरियम के पास उन के भाई के विषय में शान्ति देने के लिये आए थे।
20 सो मारथा यीशु के आने का समचार सुनकर उस से भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही।
21 मारथा ने यीशु से कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।
22 और अब भी मैं जानती हूं, कि जो कुछ तू परमेश्वर से मांगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।
23 यीशु ने उस से कहा, तेरा भाई जी उठेगा।
24 मारथा ने उस से कहा, मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।
25 यीशु ने उस से कहा, पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।
26 और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा, क्या तू इस बात पर विश्वास करती है?
27 उस ने उस से कहा, हां हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूं, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला था, वह तू ही है।
28 यह कहकर वह चली गई, और अपनी बहिन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, गुरू यहीं है, और तुझे बुलाता है।
29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई।
30 (यीशु अभी गांव में नहीं पहुंचा था, परन्तु उसी स्थान में था जहां मारथा ने उस से भेंट की थी।)
31 तब जो यहूदी उसके साथ घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिये।
32 जब मरियम वहां पहुंची जहां यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पांवों पर गिर के कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता तो मेरा भाई न मरता।
33 जब यीशु न उस को और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास हुआ, और घबरा कर कहा, तुम ने उसे कहां रखा है?
34 उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, चलकर देख ले।
35 यीशु के आंसू बहने लगे।
36 तब यहूदी कहने लगे, देखो, वह उस से कैसी प्रीति रखता था।
37 परन्तु उन में से कितनों ने कहा, क्या यह जिस ने अन्धे की आंखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता
38 यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा थी, और एक पत्थर उस पर धरा था।
39 यीशु ने कहा; पत्थर को उठाओ: उस मरे हुए की बहिन मारथा उस से कहने लगी, हे प्रभु, उस में से अब तो र्दुगंध आती है क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।
40 यीशु ने उस से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।
41 तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया, फिर यीशु ने आंखें उठाकर कहा, हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं कि तू ने मेरी सुन ली है।
42 और मै जानता था, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस पास खड़ी है, उन के कारण मैं ने यह कहा, जिस से कि वे विश्वास करें, कि तू ने मुझे भेजा है।
43 यह कहकर उस ने बड़े शब्द से पुकारा, कि हे लाजर, निकल आ।
44 जो मर गया था, वह कफन से हाथ पांव बन्धे हुए निकल आया और उसका मुंह अंगोछे से लिपटा हुआ तें यीशु ने उन से कहा, उसे खोलकर जाने दो॥

यूहन्ना 11:1-44

यीशु ने सेवा करने के लिए स्वयं को दिया

बहनों को अपेक्षा थी कि यीशु उनके भाई को चँगा करने के लिए शीघ्र आएगा। यीशु ने जानबूझकर अपने आगमन में देरी की, जिससे लाजर को मरने में सहायता मिली और यह बात किसी को भी समझ नहीं आई कि उसने ऐसा क्यों किया। वृतान्त दो बार बताता है कि यीशु ‘बहुत अधिक व्याकुल’ हो गया था और यह कि वह रोया।

उसे किस बात ने व्याकुल किया?

यीशु स्वयं मृत्यु से क्रोधित था, विशेष रूप से जब उसने उसके मित्र को अपने बन्धन में रखा हुआ था।

उसने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आने में देरी की थी – ताकि वह स्वयं मृत्यु का सामना करे न कि केवल कुछ बीमारी का। यीशु ने चार दिन प्रतिक्षा की ताकि हर कोई – जिसमें हम भी शामिल हैं – यह निश्चित जान लें कि लाजर मर चुका था, न कि वह मात्र गंभीर रूप से बीमार था।

हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता

बीमार लोगों को चँगा करना, स्वयं में अच्छा है, परन्तु यह मात्र उनकी मृत्यु को कुछ समय के लिए स्थगित करता है। चँगा हुए या नहीं हुए, मृत्यु अंततः सभी लोगों को ले जाती है, चाहे वे अच्छे हों या बुरे हों, पुरूष या स्त्री, बूढ़े या जवान, धार्मिक या अधर्मी ही क्यों न हो। यह आदम के समय से ही सत्य है, जो अपनी अवज्ञा के कारण नश्वर हो गया था। उनके सारे वंशज में, आपको और मुझे भी शामिल किया गया, एक शत्रु द्वारा बंधक बनाकर रखा गया – जो कि मृत्यु है। हमें प्रतीत होता है कि मृत्यु के विरूद्ध हमारे पास कोई उत्तर नहीं है, कोई आशा नहीं है। जब केवल बीमारी होती है तो आशा बनी रहती है, यही कारण है कि लाजर की बहनों को चँगा होने की आशा थी। परन्तु मृत्यु के साथ ही उन्हें कोई आशा नहीं रही गई। यह सत्य हमारे साथ भी है। अस्पताल में कुछ आशा होती है परन्तु अंतिम संस्कार के समय कोई आशा नहीं होती है। मृत्यु हमारा अन्तिम शत्रु है। यही वह शत्रु है, जिसे पराजित करने के लिए यीशु ने स्वयं को हमारे लिए स्वेच्छा से दिया और इसी कारण उसने बहनों को घोषित किया कि:

“पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ।”

यूहन्ना 11:25

यीशु मृत्यु की सामर्थ्य को तोड़ने और उन सभी को जीवन देने के लिए आए थे जो इसे चाहते थे। उसने इस मिशन की प्राप्ति के लिए अपने अधिकार को सार्वजनिक रूप से मृत्यु के ऊपर लाजर को जीवित करके दिखाया। वह अन्य सभी के लिए वही कुछ करने की पेशकश करता है जो मृत्यु के बदले जीवन को चाहते हैं।

इसका प्रतिउत्तर एक झगड़े को आरम्भ करता है

यद्यपि मृत्यु सभी लोगों का अन्तिम शत्रु है, हम में से बहुत से लोग छोटे ‘शत्रुओं’ के साथ पकड़े जाते हैं, जो संघर्षों के (राजनीतिक, धार्मिक, जातीय आदि) परिणामस्वरूप होते हैं, जो हर समय हमारे चारों ओर बने रहते हैं। हम इसे अयोध्या के संघर्ष में देखते हैं। यद्यपि, इस और अन्य झगड़े में सभी लोग, चाहे उनका ‘पक्ष’ सही हो या न हो, मृत्यु के विरूद्ध शक्तिहीन हैं। इसे हमने सती और शिव के साथ देखा था।

यह यीशु के समय में भी सत्य था। इस आश्चर्यकर्म की प्रतिक्रियाओं से हम यह देख सकते हैं कि तब वहाँ रहने वाले विभिन्न लोगों की मुख्य चिन्ताएँ क्या थीं। सुसमाचार ने अलग-अलग प्रतिक्रियाओं को लिपिबद्ध किया है।

45 तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा था, उन में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
46 परन्तु उन में से कितनों ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया॥
47 इस पर महायाजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा के लोगों को इकट्ठा करके कहा, हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है।
48 यदि हम उसे यों ही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।
49 तब उन में से काइफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उन से कहा, तुम कुछ नहीं जानते।
50 और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि हमारे लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।
51 यह बात उस ने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा।
52 और न केवल उस जाति के लिये, वरन इसलिये भी, कि परमेश्वर की तित्तर बित्तर सन्तानों को एक कर दे।
53 सो उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे॥
54 इसलिये यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहां से जंगल के निकट के देश में इफ्राईम नाम, एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा।
55 और यहूदियों का फसह निकट था, और बहुतेरे लोग फसह से पहिले देहात से यरूशलेम को गए कि अपने आप को शुद्ध करें।
56 सो वे यीशु को ढूंढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, तुम क्या समझते हो
57 क्या वह पर्व में नहीं आएगा? और महायाजकों और फरीसियों ने भी आज्ञा दे रखी थी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहां है तो बताए, कि उसे पकड़ लें॥

यूहन्ना 11: 45-57

यहूदी मन्दिर की स्थिति के बारे में अगुवे अधिक चिंतित थे। एक समृद्ध मंदिर ने समाज में अपनी प्रमुखता को सुनिश्चित किया था। वे इसके स्थान पर मृत्यु के दृष्टिकोण से अधिक चिन्तित थे।

इसलिए तनाव बढ़ गया। यीशु ने घोषणा की कि वह ‘जीवन’ और ‘पुनरुत्थान’ था और वह स्वयं मृत्यु को पराजित करेगा। उसकी मृत्यु की साजिश रचकर अगुवों ने प्रतिउत्तर दिया। बहुत से लोग उस पर विश्वास करते थे, परन्तु कई अन्य नहीं जानते थे कि क्या विश्वास करना है।

अपने आप से यह पूछें …

यदि आप लाजर के जी उठने के गवाह हैं तो आप क्या चुनेंगे? क्या आप फरीसियों की तरह चुनेंगे, क्या आप कुछ संघर्ष पर ध्यान केन्द्रित करेंगे जिन्हें इतिहास शीघ्र ही भूल जाएगा, और मृत्यु से जीवन की प्राप्ति के प्रस्ताव को खो देंगे? या क्या आप पुनरुत्थान के उसके प्रस्ताव के ऊपर भरोसा करते हुए, उस पर ‘विश्वास’ करेंगे, भले ही आप यह सब अभी न समझे? विभिन्न प्रतिक्रियाँ जिन्हें सुसमाचार लिपिबद्ध करता हैं, वे उसी तरह की प्रतिक्रियाएँ हैं, जिन्हें हम आज व्यक्त करते हैं। यह हमारे लिए वैसा ही मूल विवाद है जैसा यह तब था।

फसह – 1500 वर्षों पहले मृत्यु को दूर करने के लिए फसह के त्योहार के रूप में चिन्ह स्वरूप आरम्भ हुए त्योहार के निकट आने पर ऐसे विवाद बढ़ते चले जा रहे थे। सुसमाचार से पता चलता है कि कैसे यीशु ने कार सेवक के अपने मिशन को मृत्यु के विरूद्धमृतकों के पवित्र शहर वाराणसी में, एक दिन जिसे अब खजूरी इतवार के नाम से जाना जाता है, प्रवेश किया था।