दिन 2: यीशु के द्वारा मंदिर का बन्द किया जाना… घातक प्रदर्शन की ओर ले चलता है

यीशु ने यरूशलेम में एक तरह से राजा के रूप में दावा करते हुए और सभी देशों के लिए एक ज्योति के रूप में प्रवेश किया था। इसने इतिहास के सबसे अधिक उथल-पुथल वाले सप्ताह में से एक को आरम्भ किया, जिसे आज भी महसूस किया जाता है। परन्तु यह वह बात थी जिसे उसने मंदिर में किया था जिसने अगुवों के साथ उसके उबलते हुए संघर्ष को विस्फोटित किया। उस मंदिर में क्या हुआ, इसे समझने के लिए हमें इसकी तुलना आज के सबसे धनी और सबसे लोकप्रिय मंदिरों से करनी चाहिए।

भारत के समृद्ध और प्रसिद्ध मंदिर

बृहदीश्वर मंदिर

(राजराजेश्वरम या पेरुवुटैयार कोविल) तमिल राजा चोल 1 के द्वारा (1003-1010 ईस्वी सन्) में बनाया गया था, इसे एक शाही मंदिर के रूप में बनाया गया था। इसके निर्माण के पीछे राजा और राज्य की शक्ति और संसाधनों के होने के कारण, यह शाही मंदिर बहुत बड़ा था, जिसे बड़े पैमाने पर काटे गए पत्थरों से बनाया गया था। जब बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण पूरा हुआ तब यह भारत में सबसे बड़ा मंदिर था और आज इसे “महान् जीवित चोल मंदिर” का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है।

• भव्य बृहदीश्वर मंदिर

• बृहदीश्वर की अवस्थिति

• बृहदीश्वर: एक और दृश्य

कैलाश पहाड़ी में अपने नियमित घर के पूरक के लिए शिव के लिए एक दक्षिणी घर के रूप में निर्मित, यह एक नियोक्ता, एक जमींदार, और एक ऋणदाता के रूप में भी काम करता था। इन गतिविधियों के कारण बृहदीश्वर मंदिर दक्षिणी भारत के लिए एक प्रमुख आर्थिक संस्थान के रूप में बदल गया, जिसमें बहुत अधिक संपत्ति थी। राजा की सरकार ने शाही मंदिर कर्मचारियों को नियुक्त किया जो अच्छी तरह से परिभाषित शक्तियों और जिम्मेदारियों के भीतर रहकर काम करते थे। परिणामस्वरूप, किसी अन्य मंदिर के पास इस मंदिर की तुलना में संपत्ति, सोना और नकदी नहीं थी, जब तक कि इसकी महिमा नीचे दिए मंदिर के कारण फीकी नहीं पड़ गई…

वेंकटेश्वर मंदिर

यह आंध्र प्रदेश के तिरुपति में स्थित है। मंदिर वेंकटेश्वर (बालाजी, गोविन्द, या श्रीनिवास) को समर्पित है। इस मंदिर के अन्य नाम: तिरुमाला मंदिर, तिरुपति मंदिर और तिरुपति बालाजी मंदिर हैं। यह आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो इस मंदिर से उत्पन्न राजस्व का उपयोग करती है। वेंकटेश्वर मंदिर भारत का सबसे धनी मंदिर है और कहा जाता है कि यह संसार के सबसे धनी धार्मिक संस्थानों में से एक है।

  • तिरुपति में स्थित वेंकटेश्वर मंदिर
  • आंध्र प्रदेश में अवस्थिति

यह नियमित रूप से प्रति दिन एक लाख श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है और श्रद्धालुओं से प्रचुर मात्रा में भेंटों, सामान्य रूप से नकदी और सोने के रूप में, परन्तु साथ ही बालों को भी प्राप्त करता है। इसके पीछे दी गई कहानी का विषय वेंकटेश्वर का स्थानीय लड़की के साथ दहेज के जाल में फंसकर शादी करना है। कई श्रद्धालुओं का मानना है कि वे उसके लिए उस ब्याज का कुछ भुगतान करने में सहायता करते हैं। कोविड-19 के कारण, मंदिर कठिन समय में निकल रहा है और उसे 1200 श्रमिकों को नौकरी से निकलना पड़ा है।

पद्मनाभस्वामी मंदिर …

केरल में हाल ही में सबसे धनी मंदिरों की सूची में सबसे ऊपर है। इस मंदिर में पद्मनाभस्वामी, सर्प आदि शेषनाग के ऊपर विराजमान, प्रमुख देवता हैं। इसका सबसे बड़ा त्योहार लक्षा दीपम्, या एक लाख दीपक है जो प्रत्येक 6 वर्षों में एक बार आता है। 2011 में, सरकारी अधिकारियों ने घोषणा की कि उन्होंने पद्मनाभस्वामी मंदिर के गुप्त तहखाने में स्थित तिजौरियों में हीरे, सोने के सिक्के, सोने की मूर्तियों, आभूषणों और अन्य धन की बोरियों वाले खजाने की खोज की। विशेषज्ञ अब इसका मूल्य दो लाख करोड़ अमरीकी डॉलर होने का अनुमान लगाते हैं।

• स्वर्ण पद्मनाभस्वामी

  • • पद्मनाभस्वामी की अवस्थिति
  • • पद्मनाभस्वामी मंदिर

इब्रानी मंदिर

इब्रानी लोगों के पास केवल एक ही मंदिर था, और यह यरूशलेम में स्थित था। बृहदीश्वर की तरह, यह एक शाही मंदिर था, जिसे राजा सुलैमान ने 950 ईसा पूर्व निर्माण किया था। यह कई नक्काशी, सजावट और बहुत सारे सोने के साथ बनी हुई एक विस्तृत संरचना थी। इब्रानी लोगों ने प्रथम मंदिर के विनाश के बाद ठीक उसी स्थान पर एक दूसरे मंदिर का निर्माण किया था। शक्तिशाली हेरोदेस महान् ने इस मंदिर का बहुत अधिक विस्तार किया, जिससे कि यीशु के प्रवेश के समय यह रोमन साम्राज्य में सबसे प्रभावशाली संरचनाओं में से एक था, जिसे बड़े पैमाने पर पूरी तरह सोने से सजाया गया था। रोमन साम्राज्य से यहूदी तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की एक स्थिर जल धारा निर्धारित त्योहारों पर श्रद्धालुओं के रूप में बाढ़ की तरह आते थे। इस प्रकार वहाँ पर पुजारियों और आपूर्तिकर्ताओं का एक बड़ा कार्यबल था, जिन्होंने मंदिर की पूजा को एक समृद्ध उद्योग में बदल दिया था।

 यरूशलेम के मंदिर का ऐतिहासिक नमूना

  • यरूशलेम के मंदिर के ऊपर स्थित गगनचुंबी भवन

धन, प्रतिष्ठा, शक्ति और वैभव में यह मंदिर बृहदीश्वर, वेंकटेश्वर और पद्मनाभस्वामी मंदिरों की तरह ही था।

फिर भी यह अन्य तरीकों से भिन्न था। यह पूरी भूमि पर एकमात्र मंदिर था। इसके परिसर में कोई एक भी मूर्ति या मूर्तियाँ नहीं थीं। यह उस बात के दावे को दर्शाता है जिसे परमेश्वर ने अपने प्राचीन इब्रानी भविष्द्वक्ताओं के द्वारा अपने निवास स्थान के विषय में बोला था।

1 यहोवा यों कहता है : “आकाश मेरा सिंहासन और पृथ्वी मेरे चरणों की चौकी है; तुम मेरे लिये कैसा भवन बनाओगे, और मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा?

2 यहोवा की यह वाणी है, ये सब वस्तुएँ मेरे ही हाथ की बनाई हुई हैं, इसलिये ये सब मेरी ही हैं।

यशायाह 66:1-2अ

यह मंदिर वह नहीं था जहाँ परमेश्वर वास करता था। इसके स्थान पर यह वह स्थान था जहाँ लोग परमेश्वर का सामना सीधे कर सकते थे, जहाँ उसकी उपस्थिति सक्रिय रूप में पाई जाती थी। परमेश्वर ही यहाँ पर सक्रिय मध्यस्थक था, उपासक नहीं।

सक्रिय मध्यस्थक जाँच: परमेश्वर या तीर्थ यात्री?

इस पर इस तरीके से विचार करें। बृहदीश्वर, वेंकटेश्वर और पद्मनाभस्वामी मंदिरों में जाते समय, श्रद्धालु चुनते हैं कि वे किस देवता की पूजा करेंगे। उदाहरण के लिए, यद्यपि बृहदीश्वर शिव को समर्पित है, तथापि इसमें विष्णु, गणेश, हरिहर (आधा शिव, आधा विष्णु), सरस्वती सहित अन्य देवता पाए जाते हैं। इसलिए श्रद्धालु से आशा की जाती है कि बृहदीश्वर में प्रवेश करने पर कौन से देवताओं की पूजा करनी चाहिए। वे अपनी पसंद के सभी, कुछ या कुछ देवताओं की इक्ट्ठी पूजा कर सकते हैं। यह इन सभी मंदिरों के साथ सच है क्योंकि इनमें कई तरह की मर्तियाँ पाई जाती हैं। देवता का चयन करना एक तीर्थ यात्री के ऊपर टिका हुआ है।

इसके अतिरिक्त, इन मंदिरों में श्रद्धालु चुनते हैं कि किस प्रकार की या भेंट के लिए कितनी राशि को दिया जाए। ये मंदिर सैकड़ों वर्षों में समृद्ध हुए हैं, क्योंकि तीर्थयात्रियों, राजाओं और अधिकारियों ने निर्णय लिया था कि उनमें से प्रत्येक क्या देगा। मंदिरों में स्वयं देवताओं ने यह नहीं बताया कि उन्हें क्या भेंट दी जानी चाहिए।

यद्यपि हम देवताओं की पूजा करने के लिए तीर्थयात्रा करते हैं, हम इस तरह से काम करते हैं जैसे कि देवता वास्तव में शक्तिहीन हैं क्योंकि हम उनसे कभी भी यह आशा नहीं करते कि वे हमें चुनेंगे; अपितु हम उन्हें चुनते हैं।

यह इस प्रश्न को पूछने के लिए प्रेरित करता है कि मंदिर, परमेश्वर या तीर्थयात्री में सक्रिय मध्यस्थक कौन है, हम समझ सकते हैं कि दु∶ख भोग सप्ताह के 2रे दिन, सोमवार, को यीशु के साथ क्या घटित हुआ था। उस मंदिर के परमेश्वर, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी को रचा है, ने उसे चुना  और उससे एक भेंट की मांग की। इस दृष्टिकोण के साथ हम पृष्ठभूमि के नियमों की समीक्षा करते हैं।

उस दिन मेम्ने का चुना जाना

यीशु ने दु∶ख भोग सप्ताह के दिन 1, निसान 9, रविवार को यरूशलेम में प्रवेश किया। प्राचीन इब्रानी वेदों ने निसान 10 के अगले दिन  के लिए नियम दिए गए हैं, जिससे यह उनके पंचांग अर्थात् कैलेंडर में यह अद्वितीय रूप में मिलता था। पन्द्रह सौ वर्षों पहले, परमेश्वर ने मूसा को निर्देश दिया था कि आने वाले फसह के त्योहार की तैयारी कैसे करें। परमेश्वर ने कहा था:

1 फिर यहोवा ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा,

2 “यह महीना तुम लोगों के लिये आरम्भ का ठहरे; अर्थात् वर्ष का पहला महीना यही ठहरे।

3 इस्राएल की सारी मण्डली से इस प्रकार कहो; इसी महीने के दसवें दिन को तुम अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार, घराने पीछे एक एक मेम्ना ले रखो;

निर्गमन 12:1-3

और केवल उस दिन

निसान यहूदी वर्ष का पहला महीना था। इसलिए, मूसा ने प्रत्येक यहूदी परिवार को निसान 10 से आगे आने वाले फसह के त्योहार के लिए अपने लिए मेम्ने को चुनने के लिए कहा। उन्होंने केवल उसी दिन  उसे चुना। उन्होंने यरूशलेम के मंदिर परिसर में फसह के मेम्नों का चयन किया – ठीक वही स्थान जहाँ अब्राहम के बलिदान ने यरूशलेम को बहुत पहले पवित्र बना दिया था। एक विशेष स्थान पर, एक स्पष्ट दिन में (निसान 10), यहूदी आगामी फसह के त्योहार (निसान 14) के लिए अपने मेम्नों को चुनते थे।

जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं, निसान 10 के दिन लोगों और जानवरों का विशाल जनसमूह, अदल-बदल के व्यापार का शोर, मुद्रा विनिमय मंदिर को उन्मादी बाजार में बदल देता था। बृहदीश्वर, वेंकटेश्वर और पद्मनाभस्वामी मंदिरों में आज देखी जाने वाली गतिविधियाँ और तीर्थयात्री तुलनात्मक रूप से शांत प्रतीत होंगें।

मंदिर को बन्द करने के द्वारा – यीशु को चुना गया

सुसमाचार लिपिबद्ध करता है कि यीशु ने उस दिन क्या किया। जब यह ‘अगली सुबह’ बताता है, तो यह यरूशलेम में मंदिर में फसह के मेम्नों के चुने जाने, अर्थात् निसान 10वाँ दिन अर्थात् शाही प्रवेश के बाद का दिन था ।

ह यरूशलेम पहुँचकर मन्दिर (निसान 9) में आया।

मरकुस 11:11

अगलसुबह (निसान 10)

दूसरे दिन (निसान 10)

मरकुस 11:12अ

15 फिर वे यरूशलेम में आए, और वह मन्दिर में गया; और वहाँ जो लेन-देन कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा, और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं,

16 और मन्दिर में से किसी को बरतन लेकर आने जाने न दिया।

17 और उपदेश करके उनसे कहा, “क्या यह नहीं लिखा है कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।”

मरकुस 11:15-17

यीशु सोमवार को निसान 10 के दिन मंदिर में गया, और उत्साहपूर्वक व्यावसायिक गतिविधि को बंद कर दिया। खरीद और बिक्री ने प्रार्थना के काम में एक बाधा को उत्पन्न किया था, विशेषकर अन्य जातियों के लोगों के लिए। इन जातियों के लिए एक ज्योति होने के नाते, उसने व्यापार के काम को रोककर उस बाधा को तोड़ दिया। परन्तु कुछ अनदेखी बातें भी एक साथ घटित हुईं थीं, नीचे दिए गए इस शीर्षक से पता चलता है कि स्वामी यूहन्ना ने इसकी पहचान यीशु के साथ की थी।

परमेश्वर ने अपने मेम्ने को चुन लिया था

उसका परिचय देते हुए यूहन्ना ने ऐसे कहा है:

दूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, “देखो, यह परमेश्‍वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है।

यूहन्ना 1:29

यीशु ‘परमेश्वर का मेम्ना’ था। अब्राहम के बलिदान में, यह परमेश्वर ही था जिसने अब्राहम के पुत्र के स्थान पर मेम्ने को बलिदान के लिए चुना था। मंदिर इसी स्थान पर स्थित था। जब यीशु ने निसान 10 के दिन मंदिर में प्रवेश किया तो परमेश्वर ने उसे अपने फसह के मेम्ने के रूप में चुन लिया। चुने जाने के लिए उसे इसी सटीक दिन में मंदिर में होना चाहिए था।

और वह वहाँ था।

परमेश्वर ने चुने जाने की बुलाहट के विषय में बहुत पहले से भविष्यद्वाणी दी थी:

बलिदान और आप की पेशकश इच्छा नहीं थी-
लेकिन मेरे कान तुमने खोले हैं-
जले हुए प्रसाद और पाप प्रसाद की आपको आवश्यकता नहीं थी।
7 तब मैंने कहा, “मैं यहाँ हूँ, मैं आया हूँ-
यह स्क्रॉल में मेरे बारे में लिखा गया है।
8 मैं तुम्हारी इच्छा, मेरे भगवान करने की इच्छा करता हूं;
आपका कानून मेरे दिल के भीतर है। ”

भजन संहिता 40∶6-8

मंदिर की गतिविधियाँ उपहारों और भेटों द्वारा संचालित होती हैं। परन्तु यह कभी भी परमेश्वर की प्राथमिक इच्छा नहीं थी। भविष्यद्वाणी ने संकेत दिया था कि वह एक निश्चित व्यक्ति  को चाहता था। जब परमेश्वर उसे देखगा तो वह उसे बुलाएगा, और यह व्यक्ति प्रतिउत्तर देगा। यह तब घटित हुआ जब यीशु ने मंदिर को बंद कर दिया था। भविष्यद्वाणी ने इसके विषय में पूर्वकथित ही बता दिया था और उस तरीके को भी जिसमें घटनाओं ने सप्ताह के शेष हिस्सों में इसका प्रदर्शन किया।

यीशु ने मंदिर को क्यों बंद कर दिया था

उसने ऐसा क्यों किया? यशायाह के उद्धरण के साथ यीशु ने उत्तर दिया, क्योंकि मेरा भवन सब देशों के लोगों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा की पूरी भविष्यद्वाणी को नीचे पढ़ें (उसके उद्धरण के नीचे रेखा खींची गई है)।

6 “परदेशी भी जो यहोवा के साथ इस इच्छा से मिले हुए हैं कि उसकी सेवा टहल करें और यहोवा के नाम से प्रीति रखें और उसके दास हो जाएँ, जितने विश्रामदिन को अपवित्र करने से बचे रहते और मेरी वाचा का पालन करते हैं,

7 उनको मैं अपने पवित्र पर्वत पर ले आकर अपने प्रार्थना के भवन में आनन्दित करूँगा; उनके होमबलि और मेलबलि मेरी वेदी पर ग्रहण किए जाएँगे; क्योंकि मेरा भवन सब देशों के लोगों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा।“

यशायाह 56:6-7
 ऐतिहासिक समय-सीमा में ऋषि यशायाह और अन्य इब्रानी ऋषि (भविष्यद्वक्ता)

‘पवित्र पर्वत’ मोरिय्याह पहाड़  था, जहाँ पर परमेश्वर ने अब्राहम के लिए मेम्ने को चुना था। ‘प्रार्थना का घर’ वह मंदिर था जिसमें यीशु ने निसान 10 के दिन प्रवेश किया था। यद्यपि, केवल यीशु ही प्रभु परमेश्वर की आराधना करने के लिए यहूदी मंदिर में प्रवेश कर सकता था। परन्तु यशायाह ने पहले से ही देख लिया था कि विदेशी (गैर-यहूदी) देखेंगे कि उनकी भेटों को उसके द्वारा स्वीकार किया जा रहा है। यशायाह के माध्यम से, यीशु ने घोषणा की कि उसके द्वारा मंदिर को बंद किया जाना गैर-यहूदियों के लिए खोल दिया जाना होगा। यह कैसे होगा यह अगले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।

दुख भोग में अगले दिन

हम उस सोमवार की घटनाओं को समय-रेखा में, फसह के मेम्ने के चुने जाने संबंधी नियमों को ऊपरी ओर और यीशु के द्वारा मंदिर के बंद किए जाने को निचली ओर रखने के द्वारा सम्मिलित करते हुए जोड़ते हैं।

इब्रानी वेदों में दिए गए नियमों की तुलना सोमवार, दिन 2 की घटनाओं से की गई है

सुसमाचार यीशु द्वारा मंदिर के बंद किए जाने के प्रभाव को लिपिबद्ध करता है:

यह सुनकर प्रधान याजक और शास्त्री उसके नाश करने का अवसर ढूँढ़ने लगे; क्योंकि वे उससे डरते थे, इसलिये कि सब लोग उसके उपदेश से चकित होते थे।

मरकुस 11:18

यीशु द्वारा मंदिर को बंद किए जाने ने अगुवों के साथ एक संघर्ष को आरम्भ किया क्योंकि उन्होंने अब उसकी हत्या की साजिश रची। हम इसे अगले दिन 3 में देखते हैं, यीशु हजारों वर्षों तक चलने वाले एक शाप का उच्चारण करता है।