दिन 6: शुभ शुक्रवार – यीशु की महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि (शिव की बड़ी रात) का उत्सव फाल्गुन (फरवरी/मार्च) के 13वें दिन की शाम को आरम्भ होता है, 14वें दिन में जारी रहता है। अन्य त्योहारों से अलग, यह सूर्यास्त के बाद आरम्भ होता है और पूरी रात चलता हुआ अगले दिन सुबह तक जाता है। अन्य त्योहारों के विशेष उल्लासपूर्ण भोज समारोह और आनन्द के स्थान पर यह त्योहार उपवास, आत्मविश्लेषण और सतर्कता को चिह्नित करती है। महाशिवरात्रि जीवन और संसार में “अंधकार और अज्ञान पर जय पाने” को स्मरण करती है। उत्साही भक्त पूरी रात जागरण करते हैं।

महाशिवरात्रि एवं समुद्र का मंथन करना

पौराणिक कथाओं में महाशिवरात्रि के कई कारण दिए गए हैं। कुछ कहते हैं कि इस दिन भगवान् शिव ने समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हलाहल विष को अपने कंठ में रख लिया था। इसने उनके गले को नीला कर दिया और इसलिए उनका नाम नीलकंठ  पड़ गया। भागवत पुराण, महाभारत और विष्णु पुराण इस गाथा का वर्णन करते हैं, जो साथ ही अमरता के अमृत की व्याख्या भी करते हैं। कहानी कुछ इस प्रकार मिलती है कि देवों और असुरों ने एक अस्थायी गठबंधन बनाकर, अमरता के इस अमृत को प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया। समुद्र का मंथन करने के लिए उन्होंने मंदार पर्वत को एक लाठी के रूप में उपयोग किया। उन्होंने वासुकी का उपयोग किया, जो कि एक नागराज है, जिसे उन्होंने शिव के गले के साथ, मंथन वाली एक रस्सी के रूप में बाँध दिया।

समुद्र के मंथन ने बहुत अधिक कलाकृति को जन्म दिया ह

समुद्र के आगे-पीछे मंथन करने से, साँप वासुकी ने एक घातक जहर को इतनी अधिक शक्ति के साथ उगला कि यह न केवल समुद्र को अपितु संसार के सभी कुछ को भी नष्ट कर देती। उन्हें बचाने के लिए शिव ने जहर को अपने मुँह में थाम लिया और इससे उनका गला नीला हो गया। कुछ संस्करण कहते हैं कि भगवान शिव ने जहर को निगल लिया था और जहर के उनके शरीर में प्रवेश करते ही उन्हें अत्याधिक पीड़ा हुई। इस कारण से, श्रद्धालु इस अवसर को उपवास के साथ,  सौहार्दपूर्ण और आत्मविश्लेषण वाले तरीके से मनाते हैं।

बहरूपिया शिव साँप के जहर को लेने का मंचन करते हुए

इस उत्सव को मनाती हुई समुद्र मंथन और महाशिवरात्रि की कहानी, उस विषय के लिए संदर्भ प्रदान करती है जिसे यीशु ने दु:ख भोग के 6वें दिन में किया था, इसलिए हम इसके अर्थ की सराहना कर सकते हैं।

यीशु और प्रतीकात्मक समुद्र मंथन

जब यीशु ने 1ले दिन यरुशलेम में प्रवेश किया, तो वह मोरिय्याह पहाड़ के ऊपर खड़ा था, जहाँ 2000 वर्षों पहले अब्राहम ने भविष्यद्वाणी की थी कि एक महान बलिदान प्रदान किया ‘जाएगा’ (भविष्य में)। तब यीशु ने घोषणा की थी कि:

31 अब इस जगत का न्याय होता है, अब इस जगत का सरदार निकाल दिया

जाएगा।यूहन्ना 12:31
क्रूस पर सामना करते हुए साँप की बहुत सी कलाकृतियों को बनाया गया है

यह ‘संसार’ उस पर्वत पर होने वाले संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमने वाला है, जो कि उसके और इस संसार के ‘राजकुमार‘, शैतान के बीच होने पर है, जिसे अक्सर एक साँप के रूप में दर्शाया जाता है। प्रतीकात्मक रूप से बोलना, मोरिय्याह पर्वत मंदार पर्वत, एक घूमने वाली लाठी, जो आने वाले युद्ध में पूरे संसार का मंथन करेगी।

साँप (नागराज) शैतान ने यीशु मसीह पर आक्रमण करने के लिए 5वें दिन यहूदा में प्रवेश किया था। जैसे वासुकी एक मंथन की रस्सी बन गए थे, आलंकारिक रूप से बोलना मोरिय्याह पर्वत के चारों ओर मंथन करने वाली रस्सी शैतान बन जाएगा क्योंकि इन दोनों के बीच लड़ाई अपने चरमोत्कर्ष पर थी।

अन्तिम भोज

अगली शाम यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोज को साझा किया। यह माह की 13वीं शाम थी, जैसे महाशिवरात्रि महीने की 13वीं तिथि को आरम्भ होती है। उस भोज में यीशु ने उस ‘प्याले’ के बारे में साझा किया था जिसे वह पीने के लिए जा रहा था, ठीक वैसे जैसे शिव ने वासुकी का जहर पिया था। यहाँ वह चर्चा इस प्रकार दी गई है।

27 फिर उस ने कटोरा लेकर, धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, तुम सब इस में से पीओ।
28 क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया

जाता है।मत्ती 26:27-28

फिर उसने उदाहरण के माध्यम से समझाया और एक दूसरे से प्रेम करने और हमारे लिए परमेश्वर के महान प्रेम के बारे में शिक्षा दी, इसे यहाँ सुसमाचार से लिपिबद्ध किया गया है। इसके बाद, उसने सभी विश्वासियों के लिए प्रार्थना की (यहाँ पढ़ें)।

गतसमनी की वाटिका में

फिर, जैसा कि हमें महाशिवरात्रि में मिलता है, उसने वाटिका में अपनी पूरी रात को आरम्भ किया

36 तब यीशु ने अपने चेलों के साथ गतसमनी नाम एक स्थान में आया और अपने चेलों से कहने लगा कि यहीं बैठे रहना, जब तक कि मैं वहां जाकर प्रार्थना करूं।
37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा।
38 तब उस ने उन से कहा; मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते: तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।
39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, कि हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।
40 फिर चेलों के पास आकर उन्हें सोते पाया, और पतरस से कहा; क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके?
41 जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।
42 फिर उस ने दूसरी बार जाकर यह प्रार्थना की; कि हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।
43 तब उस ने आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि उन की आंखें नींद से भरी थीं।
44 और उन्हें छोड़कर फिर चला गया, और वही बात फिर कहकर, तीसरी बार प्रार्थना की।
45 तब उस ने चेलों के पास आकर उन से कहा; अब सोते रहो, और विश्राम करो: देखो, घड़ी आ पहुंची है, और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है।
46 उठो, चलें; देखो, मेरा पकड़वाने वाला निकट आ पहुंचा है॥

मत्ती 26:36-46

शिष्य जागते नहीं रह पाए और जागरण तो बस अभी आरम्भ ही हुआ था! सुसमाचार फिर वर्णन करता है कि कैसे यहूदा ने उसे धोखा दिया।

वाटिका में गिरफ्तारी

2और उसका पकड़वाने वाला यहूदा भी वह जगह जानता था, क्योंकि यीशु अपने चेलों के साथ वहां जाया करता था।
3 तब यहूदा पलटन को और महायाजकों और फरीसियों की ओर से प्यादों को लेकर दीपकों और मशालों और हथियारों को लिए हुए वहां आया।
4 तब यीशु उन सब बातों को जो उस पर आनेवाली थीं, जानकर निकला, और उन से कहने लगा, किसे ढूंढ़ते हो?
5 उन्होंने उस को उत्तर दिया, यीशु नासरी को: यीशु ने उन से कहा, मैं ही हूं: और उसका पकड़वाने वाला यहूदा भी उन के साथ खड़ा था।
6 उसके यह कहते ही, कि मैं हूं, वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पड़े।
7 तब उस ने फिर उन से पूछा, तुम किस को ढूंढ़ते हो।
8 वे बोले, यीशु नासरी को। यीशु ने उत्तर दिया, मैं तो तुम से कह चुका हूं कि मैं ही हूं, यदि मुझे ढूंढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।
9 यह इसलिये हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उस ने कहा था कि जिन्हें तू ने मुझे दिया, उन में से मैं ने एक को भी न खोया।
10 शमौन पतरस ने तलवार, जो उसके पास थी, खींची और महायाजक के दास पर चलाकर, उसका दाहिना कान उड़ा दिया, उस दास का नाम मलखुस था।
11 तब यीशु ने पतरस से कहा, अपनी तलवार काठी में रख: जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे न पीऊं?
12 तब सिपाहियों और उन के सूबेदार और यहूदियों के प्यादों ने यीशु को पकड़कर बान्ध लिया।
13 और पहिले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस वर्ष के महायाजक काइफा का ससुर था

।यूहन्ना 18:2-13
यीशु की गिरफ्तारी: फिल्म का दृश्य

यीशु प्रार्थना करने के लिए वाटिका में गया था। वहाँ यहूदा अपने साथ उसे गिरफ्तार करने के लिए सैनिकों को ले आया। यदि गिरफ्तारी हमें खतरे में डालती है तो हम इससे लड़ने, इससे भागने या छिपाने का प्रयास कर सकते हैं। परन्तु यीशु ने स्वीकार किया कि उसने इनमें से कुछ भी नहीं किया था। उसने स्वीकार किया कि वह वही व्यक्ति था जिसे वे खोज रहे थे। उसकी स्पष्ट स्वीकारोक्ति (“मैं ही वही हूँ”) ने सैनिकों को चौंका दिया इस कारण उसके शिष्य वहाँ से भाग गए। यीशु को गिरफ्तार कर लिया गया और पूछताछ के लिए ले जाया गया।

पहली पूछताछ

सुसमाचार लिपिबद्ध करता है कि उन्होंने उससे कैसे पूछताछ की:

19 तक महायाजक ने यीशु से उसके चेलों के विषय में और उसके उपदेश के विषय में पूछा।
20 यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि मैं ने जगत से खोलकर बातें की; मैं ने सभाओं और आराधनालय में जहां सब यहूदी इकट्ठे हुआ करते हैं सदा उपदेश किया और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा।
21 तू मुझ से क्यों पूछता है? सुनने वालों से पूछ: कि मैं ने उन से क्या कहा? देख वे जानते हैं; कि मैं ने क्या क्या कहा
22 तब उस ने यह कहा, तो प्यादों में से एक ने जो पास खड़ा था, यीशु को थप्पड़ मारकर कहा, क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है।
23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, यदि मैं ने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्यों मारता है?
24 हन्ना ने उसे बन्धे हुए काइफा महायाजक के पास भेज दिया॥

यूहन्ना18:19-24

इसलिए उन्होंने यीशु से दूसरी बार पूछताछ के लिए महायाजक के पास भेजा।

दूसरी पूछताछ

वहाँ उन्होंने सभी अगुवों के सामने उससे पूछताछ की। सुसमाचार में यह दूसरी पूछताछ इस तरह से लिपिबद्ध है:

53 फिर वे यीशु को महायाजक के पास ले गए; और सब महायाजक और पुरिनए और शास्त्री उसके यहां इकट्ठे हो गए।
54 पतरस दूर ही दूर से उसके पीछे पीछे महायाजक के आंगन के भीतर तक गया, और प्यादों के साथ बैठ कर आग तापने लगा।
55 महायाजक और सारी महासभा यीशु के मार डालने के लिये उसके विरोध में गवाही की खोज में थे, पर न मिली।
56 क्योंकि बहुतेरे उसके विरोध में झूठी गवाही दे रहे थे, पर उन की गवाही एक सी न थी।
57 तब कितनों ने उठकर उस पर यह झूठी गवाही दी।
58 कि हम ने इसे यह कहते सुना है कि मैं इस हाथ के बनाए हुए मन्दिर को ढ़ा दूंगा, और तीन दिन में दूसरा बनाऊंगा, जो हाथ से न बना हो।
59 इस पर भी उन की गवाही एक सी न निकली।
60 तब महायाजक ने बीच में खड़े होकर यीशु से पूछा; कि तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?
61 परन्तु वह मौन साधे रहा, और कुछ उत्तर न दिया: महायाजक ने उस से फिर पूछा, क्या तू उस पर म धन्य का पुत्र मसीह है?
62 यीशु ने कहा; हां मैं हूं: और तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी और बैठे, और आकाश के बादलों के साथ आते देखोगे।
63 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा; अब हमें गवाहों का और क्या प्रयोजन है
64 तुम ने यह निन्दा सुनी: तुम्हारी क्या राय है? उन सब ने कहा, वह वध के योग्य है।
65 तब कोई तो उस पर थूकने, और कोई उसका मुंह ढांपने और उसे घूसे मारने, और उस से कहने लगे, कि भविष्यद्वाणी कर: और प्यादों ने उसे लेकर थप्पड़ मारे॥

मरकुस 14:53-65

यहूदी अगुवों ने यीशु पर मृत्यु दण्ड का दोष लगाया। चूँकि रोमी उनके ऊपर शासन करते थे, परिणामस्वरूप केवल रोमी राज्यपाल ही मृत्यु दण्ड दिए जाने की अनुमति दे सकता था। इसलिए वे यीशु को रोमी राज्यपाल पिन्तुस पिलातुस के पास ले गए। सुसमाचार यह भी बताता है कि यहूदा इस्करियोती, यीशु के साथ विश्वासघात करने वाले के साथ क्या हुआ।

विश्वासघात करने वाले का क्या हुआ?

ब भोर हुई, तो सब महायाजकों और लोगों के पुरनियों ने यीशु के मार डालने की सम्मति की।
2 और उन्होंने उसे बान्धा और ले जाकर पीलातुस हाकिम के हाथ में सौंप दिया॥
3 जब उसके पकड़वाने वाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह पछताया और वे तीस चान्दी के सिक्के महायाजकों और पुरनियों के पास फेर लाया।
4 और कहा, मैं ने निर्दोषी को घात के लिये पकड़वाकर पाप किया है? उन्होंने कहा, हमें क्या? तू ही जान।
5 तब वह उन सिक्कों मन्दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आप को

फांसी दी।मत्ती 27:1-5

यीशु की पूछताछ रोमी राज्यपाल द्वारा किया जाना

11 जब यीशु हाकिम के साम्हने खड़ा था, तो हाकिम ने उस से पूछा; कि क्या तू यहूदियों का राजा है? यीशु ने उस से कहा, तू आप ही कह रहा है।
12 जब महायाजक और पुरिनए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उस ने कुछ उत्तर नहीं दिया।
13 इस पर पीलातुस ने उस से कहा: क्या तू नहीं सुनता, कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियां दे रहे हैं?
14 परन्तु उस ने उस को एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहां तक कि हाकिम को बड़ा आश्चर्य हुआ।
15 और हाकिम की यह रीति थी, कि उस पर्व्व में लोगों के लिये किसी एक बन्धुए को जिसे वे चाहते थे, छोड़ देता था।
16 उस समय बरअब्बा नाम उन्हीं में का एक नामी बन्धुआ था।
17 सो जब वे इकट्ठे हुए, तो पीलातुस ने उन से कहा; तुम किस को चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूं? बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है?
18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है।
19 जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा हुआ था तो उस की पत्नी ने उसे कहला भेजा, कि तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना; क्योंकि मैं ने आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दुख उठाया है।
20 महायाजकों और पुरनियों ने लोगों को उभारा, कि वे बरअब्बा को मांग ले, और यीशु को नाश कराएं।
21 हाकिम ने उन से पूछा, कि इन दोनों में से किस को चाहते हो, कि तुम्हारे लिये छोड़ दूं? उन्होंने कहा; बरअब्बा को।
22 पीलातुस ने उन से पूछा; फिर यीशु को जो मसीह कहलाता है, क्या करूं? सब ने उस से कहा, वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।
23 हाकिम ने कहा; क्यों उस ने क्या बुराई की है? परन्तु वे और भी चिल्ला, चिल्लाकर कहने लगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए”।
24 जब पीलातुस ने देखा, कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इस के विपरीत हुल्लड़ होता जाता है, तो उस ने पानी लेकर भीड़ के साम्हने अपने हाथ धोए, और कहा; मैं इस धर्मी के लोहू से निर्दोष हूं; तुम ही जानो।
25 सब लोगों ने उत्तर दिया, कि इस का लोहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो।
26 इस पर उस ने बरअब्बा को उन के लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया

जाए॥मत्ती 27:11-26

क्रूसीकरण, मृत्यु एवं यीशु का गाड़ा जाना

सुसमाचार फिर यीशु के क्रूस के विवरण को लिपिबद्ध करता है।

27 तब हाकिम के सिपाहियों ने यीशु को किले में ले जाकर सारी पलटन उसके चहुं ओर इकट्ठी की।
28 और उसके कपड़े उतारकर उसे किरिमजी बागा पहिनाया।
29 और काटों को मुकुट गूंथकर उसके सिर पर रखा; और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे ठट्ठे में उड़ाने लगे, कि हे यहूदियों के राजा नमस्कार।
30 और उस पर थूका; और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे।
31 जब वे उसका ठट्ठा कर चुके, तो वह बागा उस पर से उतारकर फिर उसी के कपड़े उसे पहिनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले॥
32 बाहर जाते हुए उन्हें शमौन नाम एक कुरेनी मनुष्य मिला, उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले।
33 और उस स्थान पर जो गुलगुता नाम की जगह अर्थात खोपड़ी का स्थान कहलाता है पहुंचकर।
34 उन्होंने पित्त मिलाया हुआ दाखरस उसे पीने को दिया, परन्तु उस ने चखकर पीना न चाहा।
35 तब उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया; और चिट्ठियां डालकर उसके कपड़े बांट लिए।
36 और वहां बैठकर उसका पहरा देने लगे।
37 और उसका दोषपत्र, उसके सिर के ऊपर लगाया, कि “यह यहूदियों का राजा यीशु है”।
38 तब उसके साथ दो डाकू एक दाहिने और एक बाएं क्रूसों पर चढ़ाए गए।
39 और आने जाने वाले सिर हिला हिलाकर उस की निन्दा करते थे।
40 और यह कहते थे, कि हे मन्दिर के ढाने वाले और तीन दिन में बनाने वाले, अपने आप को तो बचा; यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ।
41 इसी रीति से महायाजक भी शास्त्रियों और पुरनियों समेत ठट्ठा कर करके कहते थे, इस ने औरों को बचाया, और अपने को नहीं बचा सकता।
42 यह तो “इस्राएल का राजा है”। अब क्रूस पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्वास करें।
43 उस ने परमेश्वर का भरोसा रखा है, यदि वह इस को चाहता है, तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इस ने कहा था, कि “मैं परमेश्वर का पुत्र हूं”।
44 इसी प्रकार डाकू भी जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे उस की निन्दा करते थे॥
45 दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा।
46 तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?
47 जो वहां खड़े थे, उन में से कितनों ने यह सुनकर कहा, वह तो एलिय्याह को पुकारता है।
48 उन में से एक तुरन्त दौड़ा, और स्पंज लेकर सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया।
49 औरों ने कहा, रह जाओ, देखें, एलिय्याह उसे बचाने आता है कि नहीं।
50 तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए।
51 और देखो मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया: और धरती डोल गई और चटानें तड़क गईं।
52 और कब्रें खुल गईं; और सोए हुए पवित्र लोगों की बहुत लोथें जी उठीं।
53 और उसके जी उठने के बाद वे कब्रों में से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए।
54 तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भुईंडोल और जो कुछ हुआ था, देखकर अत्यन्त डर गए, और कहा, सचमुच “यह परमेश्वर का पुत्र था”

।मत्ती 27:27-54
क्रूसित यीशु: उसके जीवन का सबसे अधिक चित्रित दृश्य

उसकी पसली में बेधा जाना

यूहन्ना का सुसमाचार क्रूस का एक आकर्षक विवरण लिपिबद्ध करता है। यह कहता है:

31 और इसलिये कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पीलातुस से बिनती की कि उन की टांगे तोड़ दी जाएं और वे उतारे जाएं ताकि सब्त के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन था।
32 सो सिपाहियों ने आकर पहिले की टांगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे।
33 परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उस की टांगें न तोड़ीं।
34 परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त लोहू और पानी निकला।
35 जिस ने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उस की गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो।

यूहन्ना 19:31-35

यूहन्ना ने देखा कि भाले के साथ रोमी सैनिकों ने यीशु की पसली को बेधा था। इसमें से लहू और पानी अलग निकल कर आए, जो यह दर्शाता हैं कि वह ह्दय गति रुकने से मरा था।

यीशु की पसली को बेधा गया

बहुत से लोग महाशिवरात्रि के उत्सव को इसलिए भी मनाते हैं क्योंकि वे ये मानते हैं कि इस दिन शिव ने पार्वती से विवाह किया था। शुभ शुक्रवार के समांतर महाशिवरात्रि के इसी दिन यीशु ने अपनी रहस्यमय दुल्हन को भी जीत लिया था, जिस पर उसकी पसली में भाला बेधने से छाप लगा दी गई है, इसे आगे यहाँ बताया गया है।

यीशु का गाड़ा जाना

सुसमाचार उस दिन की अंतिम घटना – उसके गाड़े जाने को लिपिबद्ध करता है ।

57 जब सांझ हुई तो यूसुफ नाम अरिमतियाह का एक धनी मनुष्य जो आप ही यीशु का चेला था आया: उस ने पीलातुस के पास जाकर यीशु की लोथ मांगी।
58 इस पर पीलातुस ने दे देने की आज्ञा दी।
59 यूसुफ ने लोथ को लेकर उसे उज्ज़वल चादर में लपेटा।
60 और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उस ने चट्टान में खुदवाई थी, और कब्र के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़काकर चला गया।
61 और मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहां कब्र के साम्हने बैठी

थीं॥मत्ती 27:57-61

दिन 6शुभ शुक्रवार

यहूदी पंचांग अर्थात् कैलेंडर में प्रत्येक दिन सूर्यास्त के समय आरम्भ होता है। इसलिए दिन 6 का आरम्भ यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अपने अंतिम भोज को साझा करने के साथ किया। उस दिन के अंत में उसे गिरफ्तार कर लिया गया था, उसकी जाँच पूरी रात भर में कई बार हुई, उसे क्रूस पर चढ़ाया गया, भाले से बेधा गया और गाड़ा गया। यह वास्तव में ‘यीशु की बड़ी रात थी।’  पीड़ा, दुःख, अपमान और मृत्यु ने इस दिन को चिह्नित किया और इसलिए लोग इसे महाशिवरात्रि के रूप में स्मरण करते हैं। इस दिन को ‘शुभ शुक्रवार’ कहा जाता है। परन्तु कैसे विश्वासघात, यातना और मृत्यु वाले दिन को ‘शुभ’ कहा जा सकता है?

क्यों शुभ शुक्रवार और क्यों नहीं ‘बुरा शुक्रवार’?

जैसे शिव के द्वारा साँप के जहर को निगलने के द्वारा संसार बचा था, वैसे ही यीशु के द्वारा प्याले में से पीने के द्वारा संसार को बचा लिया गया है। यह दिन निसान महीने के 14वें दिन आया,  उसी फसह के दिन जब बलिदान किए गए मेम्नों ने 1500 वर्षों पहले मृत्यु से बचाया था, जो यह दिखाता है कि इस योजना को पहले से ही बनाया गया था।

दिन 6 – शुक्रवार, इब्रानी वेदों के नियमों की तुलना में

लोगों के वृतान्त उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हो जाते हैं, परन्तु यीशु का नहीं। इसके बाद दिन 7 – सब्त का दिन आया।