कैसे मानव जाति आगे बढ़ती रही – मनु (या नूह) के वृतान्त से सबक

हमारी पिछली पोस्ट अर्थात् लेख में हमने यह देखा था कि मोक्ष की प्रतिज्ञा मानवीय इतिहास के बिल्कुल ही आरम्भ में दे दी गई थी।

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आरम्भ से ही – मोक्ष की प्रतिज्ञा

मेरे पिछले कुछ लेखों में मैंने यह देखा कि कैसे उसकी आरम्भिक रची हुई अवस्था से पाप में गिर कर मनुष्य पतित हो गया। परन्तु

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भ्रष्ट (भाग 2)… आपने निशाने से चूक जाना

मेरे पिछले लेख में मैंने यह देखा था कि कैसे वेद पुस्तक (बाइबल) हमें यह विवरण देती है कि हम परमेश्‍वर के वास्तविक स्वरूप जिसमें

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परन्तु पृथ्वी-के-मध्य में रहने वाले – ओर्कस् की तरह भ्रष्ट

मेरे पिछले लेख में मैंने बाइबल आधारित उस नींव को देखा था कि – कैसे हमें यह देखना चाहिए कि हम परमेश्वर के स्वरूप में

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परमेश्‍वर के स्वरूप में

हमने पहले ही देख लिया है कि कैसे पुरूषासूक्ता का आरम्भ समय के आरम्भ होने से पहले होता है और यह कैसे परमेश्‍वर की मनसा

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मोक्ष – कर्मों से स्वतंत्रता को प्राप्त करना

कर्म, गुरत्वाकर्षण की तरह ही, एक ऐसी व्यवस्था है जो कि आपके और मेरे ऊपर कार्यरत् है। कर्म का अर्थ बहुत सी बातें हो सकती

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