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काली, मौत और फसह का चिन्ह

काली अर्थात् महिषासुर मर्दिनी हिन्दू देवी दुर्गा को आमतौर पर मृत्यु की देवी के रूप में जाना जाता है, लेकिन अधिक सटीक रूप से संस्कृत शब्द काल का अर्थ शब्द समय  से निकल कर आता है। काली के प्रतीक भय उत्पन्न करने वाले हैं क्योंकि उसे आमतौर पर अपने पति शिव के अधोमुखी शरीर पर एक पैर के साथ सिरों की माला के साथ, हाथ में रक्त-टपकने वाले ताजे कटे हुए सिर को पकड़े हुए, और कटे हुए हाथों के लहंगे को पहने हुए दिखाया जाता है। काली हमें इब्रानी वेद – बाइबल में मौत की एक और कहानी को समझने में मदद करती है।

काली शिव के अधोमुखी शरीर पर सिरों के साथ और भिन्न अंगों से सुशोभित है
काली शिव के अधोमुखी शरीर पर सिरों के साथ और भिन्न अंगों से सुशोभित है

काली से सम्बन्धित पौराणिक कथाओं के वृतान्त बताते हैं कि असुर-राजा महिषासुर ने देवताओं के विरूद्ध युद्ध की धमकी दी थी। इसलिए उन्होंने काली को अपने तेज से उत्पन्न किया था। काली ने एक बड़े नरसंहार में असुर-सेना को बर्बरतापूर्वक तरीके से उसके मार्ग में आने वाले सभी को नष्ट कर दिया था। युद्ध का चरमोत्कर्ष असुर-राजा महिषासुर के साथ उसकी लड़ाई में आया जिसे उसने एक हिंसक टकराव में नष्ट कर दिया। काली ने अपने विरोधियों के शरीर को खून बहते हुए अंगों में बदल दिया, लेकिन वह उन सभी के खून से मतवाली हो गई, इसलिए वह अपने आप को मृत्यु और विनाश से नहीं रोक पाई। देवताओं को तब तक यह निश्चित नहीं था कि वे उसे कैसे रोकें जब तक कि शिव ने युद्ध के मैदान में अपने आप को गतिहीन रूप से पड़े हुए होने के लिए स्वेच्छा से उसे रोकने के लिए नहीं दे दिया। इस तरह से जब काली अपने मृत विरोधियों के सिर और हाथों से सुशोभित थी, तब उसने अपने एक पैर को शिव के अधोमुखी शरीर पर रख दिया और इसे देखते ही वह अपनी चेतना में वापस आ गई और इस तरह से विनाश समाप्त हो गया।

इब्रानी वेद में फसह का वृतान्त काली और शिव की कहानी को दर्शाता है। फसह की कहानी काली की तरह, एक दूत को लिपिबद्ध करती है, जो एक दुष्ट राजा के विरोध में व्यापक स्तर पर मृत्यु को लाता है। मृत्यु का यह दूत, जैसे कि काली को रोकने के लिए शिव ने एक कमजोर स्थिति को अपने ऊपर ले लिया, वैसे ही किसी भी घर में जाने से रोक दिया जाता है, जहां एक असहाय मेम्ने की बलि दी गई होती है। ऋषि हमें बताते हैं कि काली की इस कहानी का अर्थ अहंकार पर विजय से सम्बन्धित है। फसह की कहानी का निहितार्थ भी नासरत के यीशु – येशु सत्संग – के आने और विनम्रता में अपने अहंकार को त्यागने और हमारी ओर से अपने आप को बलिदान में देने की ओर संकेत करना भी है। फसह की कहानी को जानना अर्थपूर्ण है।

फसह का पर्व

हमने देख लिया है कि कैसे ऋषि अब्राहम के द्वारा उसके पुत्र इसहाक का बलिदान यीशु के बलिदान की ओर संकेत कर रहा था। अब्राहम की मृत्यु के पश्चात्, उसके पुत्र इसहाक के वंशज, जिन्हें अब इस्राएली कह कर पुकारा जाता है, एक बड़ी सँख्या के लोग बन गए थे परन्तु साथ ही वे मिस्र में दास अर्थात् गुलाम बन गए थे।

अब हम एक बड़े ही नाटकीय संघर्ष में आ जाते हैं जो एक व्यक्ति जिसे मूसा कहा जाता है, के द्वारा केन्द्रित है और जिसका उल्लेख इब्रानी वेद बाइबल की निर्गमन नामक पुस्तक में मिलता है। इसका नाम ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें यह वृतान्त मिलता है कि कैसे मूसा अब्राहम के 500 वर्षों के पश्चात्, लगभग 1500 ईसा पूर्व में इस्राएलियों के मिस्र के दासत्व से बाहर निकाल कर लाया। मूसा को सृष्टिकर्ता परमेश्‍वर (प्रजापति) के द्वारा आज्ञा दी गई थी कि वह मिस्र के फिरौन (शासक) का सामना करे और इसका परिणाम मूसा और फिरौन की इच्छाओं में प्रतिस्पर्धा के रूप में निकला। इस प्रतिस्पर्धा ने मिस्र के विरोध में दस विपत्तियों या अपदाओं को भी उत्पन्न किया। परन्तु फिरौन मिस्रियों को छोड़ देने के लिए सहमत नही हुआ इसलिए परमेश्‍वर 10वीं और अन्तिम विपत्ति उनके ऊपर लाने पर था। आप 10वीं विपत्ति के पूरे वृतान्त को इस लिंक पर यहाँ निर्गमन में पढ़ सकते हैं क्योंकि यह नीचे दिए गए विवरण में आपकी सहायता करेगा।

परमेश्‍वर के द्वारा 10वीं विपत्ति की आज्ञा यह थी कि मृत्यु का दूत (आत्मा) मिस्र के प्रत्येक घर के आगे से निकलेगा। उस देश की पूरी भूमि पर एक विशेष रात्रि में प्रत्येक पहिलौठा उन लोगों के घरों को छोड़कर मर जाएगा जहाँ पर एक मेम्ने का बलिदान किया गया है और इसके लहू को उस घर के द्वार की चौखटों पर लगाया हुआ है। फिरौन का विनाश उसके पुत्र और उसके सिंहासन के उत्तराधिकारी के मरने से होता है, यदि वह आज्ञा का पालन नहीं करता और मेम्ने के लहू को द्वार पर नहीं लगाता है। और मिस्र का प्रत्येक घर पहिलौठे पुत्र को खो देगा यदि वे मेम्ने का बलिदान नहीं करते और उसके लहू को चौखटों के ऊपर नहीं लगाते हैं। इस तरह से मिस्र राष्ट्रीय संकट का सामना करता है।

परन्तु वे घर जहाँ पर एक मेम्ने का बलिदान किया गया था और उसके लहू को चौखटों के ऊपर लगाया गया था के लिए यह प्रतिज्ञा दी गई थी ऐसा प्रत्येक घर सुरक्षित रहेगा। मृत्यु के दूत ने उस घर को छोड़ दिया। इस तरह से इस दिन को फसह कह कर पुकारा गया (क्योंकि मृत्यु ने उन सभी घरों को छोड़ दिया  था जहाँ पर द्वारों पर लहू को लगाया गया था)।

फसह का चिन्ह

अब जिन्होंने इस कहानी को सुना, उन्होंने यह मान लिया कि द्वारों पर लगा हुआ लहू का निशान मृत्यु के दूत के लिए निशान था। परन्तु 3500 वर्षों पहले लिखे हुए वृतान्त में से जिज्ञासा भरे हुए विवरण के ऊपर ध्यान दें।

परमेश्‍वर ने मूसा से कहा….“…मैं यहोवा हूँ। जिन घरों में तुम रहते हो उन पर [फसह के मेम्ने का] वह लहू

तुम्हारे लिए चिन्ह ठहरेगा; अर्थात् मैं उस लहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊँगा। (निर्गमन 12:13)

यद्यपि परमेश्‍वर द्वार के ऊपर लहू को देख रहा था, और जब वह उसे देखता है तो मृत्यु उसके घर को छोड़ देगी, लहू परमेश्‍वर के लिए चिन्ह नहीं था। यह बड़ी ही स्पष्टता से कहता है, कि लहू ‘आपके लिए एक चिन्ह’– अर्थात् लोगों के लिए चिन्ह था। यह साथ ही हम सभों के लिए भी चिन्ह है जो इस वृतान्त को पढ़ते हैं। परन्तु कैसे यह एक चिन्ह है? एक महत्वपूर्ण सुराग यह है कि इस घटना के घटित हो जाने के पश्चात् परमेश्‍वर ने उन्हें यह आज्ञा दी:

इस कारण वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि जानकर माना जाए। जब तुम उस देश में प्रवेश करो…तब यह काम किया करना…यह परमेश्‍वर के लिए फसह का बलिदान होगा (निर्गमन 12:17)

Jewish man with lamb at Passover
फसह के पर्व पर मेम्ने के साथ एक यहूदी व्यक्ति

यहूदी इस्राएलियों को प्रत्येक वर्ष के उसी दिन फसह का पर्व मानने की आज्ञा दी गई थी। यहूदी पंचाँग, चन्द्रमा आधारित पंचाँग होने के कारण, पश्चिमी पंचाँग से थोड़ा सा भिन्न है,यदि आप इसका आंकलन पश्चिमी पंचाँग के अनुसार करें तो आप पाएंगे कि वर्ष में दिनों की गिनती प्रत्येक वर्ष परिवर्तित होती ही जाती है। परन्तु आज के दिन भी, लगभग 3500 वर्षों के पश्चात्, यहूदी लोग निरन्तर फसह के पर्व अर्थात् त्योहार को प्रत्येक वर्ष उसी दिन दी हुई आज्ञा का पालन करते हुए इस घटना की स्मृति में मनाते हैं।

फसह का चिन्ह प्रभु यीशु की ओर संकेत कर रहा है

और इतिहास में इस पर्व की खोज करते हुए हम कुछ असाधारण बातों को नोट कर सकते हैं। आप इसे सुसमाचारों में भी ध्यान से नोट कर सकते हैं जहाँ पर यह यीशु के पकड़े और जाँचे जाने (प्रथम फसह की विपत्ति के 1500 वर्षों को पश्चात्) के विवरणों को उल्लेख करता है:

“तब वे यीशु को…रोमी राज्यपाल [पीलातुस] के किले ले गए…परन्तु वे आप किले के भीतर नहीं गए ताकि अशुद्ध न हों परन्तु फसह खा सकें”… [पीलातुस]ने [यहूदी अगुवों से] कहा “…पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह के समय में तुम्हारे लिये एक व्यक्ति को छोड़ दूँ। अत: क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये ‘यहूदियों के राजा’ को छोड़ दूँ?” तब उन्होंने फिर चिल्ला कर कहा, “इसे नहीं…”(यूहन्ना 18:28, 39-40)

दूसरे शब्दों में, यीशु को पकड़ लिया गया था और कूस्रीकरण के लिए यहूदी पंचाँग के अनुसार ठीक फसह के दिन  ही भेजा गया था। यीशु को दी हुई पदवियों में से एक यह थी

दूसरे दिन यूहन्ना ने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, “देखो, यह परमेश्‍वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है। यह वही है जिसके विषय में मैंने कहा था, ‘एक पुरूष मेरे पीछे आता है जो मुझ से श्रेष्ठ है, क्योंकि वह मुझ से पहले था’” (यूहन्ना 1:29-30)

यहाँ पर हम देखते हैं कि कैसे फसह का नाटक हमारे लिए एक चिन्ह है। यीशु, परमेश्‍वर के मेम्ने को वर्ष के ठीक उसी दिन  क्रूसित (अर्थात् बलिदान) किया गया था जब सभी यहूदी प्रथम फसह के स्मरण में मेम्ने का बलिदान कर रहे थे जो 1500 वर्षों पहले घटित हुई था। यह दो छुट्टियों के वार्षिक समय की व्याख्या करते हैं जो प्रत्येक वर्ष – समानान्तर रूप में घटित होती है जिस पर हममें से थोड़े ही ध्यान देते हैं और यहाँ तक कि बहुत ही थोड़े पूछते हैं कि ‘क्यों’ ऐसा घटित होता है? यहूदियों का फसह का पर्व प्रत्येक वर्ष लगभग उसी समय घटित होता है जब मसीहियों का ईस्टर का पर्व आता है – अपने पंचाँग को जाँचें। (प्रत्येक 19वें वर्ष के एक महीने में विचलन यहूदियों के पंचाँग के चन्द्र-आधारित लीप वर्ष के चक्र के कारण होता है)। इसलिए ही ईस्टर आगे की ओर बढ़ जाता है क्योंकि यह फसह के ऊपर आधारित है और फसह का समय यहूदी पंचाँग के द्वारा निर्धारित होता है जो वर्ष की गणना पश्चिमी पंचाँग से भिन्न रूप में करता है।

अब एक मिनट के लिए यह विचार करें चिन्ह  क्या करते हैं। आप कुछ चिन्हों को नीचे यहाँ पर देख सकते हैं।

Flag_of_India
भारत का एक चिन्ह

व्यावसायिक चिन्ह हमें मैक्डोनाल्डस् और नाईक को सोचने के लिए मजबूर करते हैं

झण्डा या ध्वज भारत का चिन्ह या प्रतीक है। हम केवल एक नांरगी और एक हरी पट्टी को ही आयताकार रूप में नहीं ‘देखते’ हैं। नहीं, जब भी हम झण्डे को देखते हैं, हम भारत को सोचते हैं। ‘सुनहरी मेहराबें’ हमें मैक्डोनाल्डस् को सोचने के बारे में मजबूर करती हैं। टेनीस खिलाड़ी नाडॉल के सिर पर बँधी हुई पट्टी पर दिया हुआ चिन्ह ‘√’ नाईक के लिए सोचने पर मजबूर करता है। नाईक चाहता है कि हम उनके बारे में सोचें जब भी हम नाडॉल के सिर पर बँधी पट्टी पर दिए हुए चिन्ह को देखते हैं। दूसरे शब्दों में, चिन्ह हमारे मनों के लिए ऐसे संकेत हैं जो हमारी सोच को इच्छित की हुई वस्तु की ओर निर्देशित करते हैं।

Signsइब्रानी वेद के निर्गमन में दिए हुए फसह का वृतान्त स्पष्ट रूप से यह कहता है कि चिन्ह लोगों के लिए दिया गया था,  न कि सृष्टिकर्ता परमेश्‍वर के लिए (यद्यपि वह अभी भी लहू की ओर देखगा और यदि वह इसे उन घरों पर देखता है तो उन्हें छोड़ देगा)। किसी भी दिए हुए चिन्ह की तरह, जब हम फसह की ओर देखते हैं तो वह हमारे मनों की सोच से क्या इच्छा रखता है? मेम्ने के बलिदान का उल्लेखनीय समय वही दिन था जिस दिन यीशु का बलिदान हुआ था, इसलिए यह यीशु के बलिदान की ओर एक संकेत करने वाला  होना चाहिए।

यह हमारे मनों में उसी तरह से कार्य करता है जैसा मैंने नीचे दिए आरेख में दिखाया है। चिन्ह वहाँ पर यीशु के बलिदान की ओर संकेत करने के लिए दिया गया था।

फसह के प्रति यीशु के बलिदान का उसी समय में घटित होना एक चिन्ह था
फसह के प्रति यीशु के बलिदान का उसी समय में घटित होना एक चिन्ह था

प्रथम फसह के समय मेम्नों का बलिदान हुआ था और लहू को लगाया गया था ताकि लोग बचाए जा सकें। और इसी प्रकार, यह चिन्ह यीशु की ओर हमें यह बताने के लिए संकेत कर रहा है कि, ‘परमेश्‍वर का मेम्ना’ मृत्यु के लिए बलिदान होने के लिए दिया गया था और उसका लहू बहाया गया ताकि हम जीवन को प्राप्त कर सकें।

हमने अब्राहम के चिन्ह लेख में देखा था जिस स्थान पर अब्राहम की परीक्षा उसके पुत्र को मोरिय्याह पहाड़ के ऊपर बलिदान देने के द्वारा की गई थी। वहीं पर एक मेम्ने को मरना था ताकि अब्राहम का पुत्र जीवित रह सके। मोरिय्याह पहाड़

अब्राहम का चिन्ह उस स्थान की ओर संकेत कर रहा था
अब्राहम का चिन्ह उस स्थान की ओर संकेत कर रहा था

ठीक वही स्थान था जहाँ पर यीशु का बलिदान हुआ था। यह चिन्ह हमें उस स्थान की ओर संकेत करते हुए उसकी मृत्यु के अर्थ को ‘देखने’ के लिए दिया गया था। फसह में हम एक ओर सूचक कोवर्ष के ठीक उसी दिन  को यीशु के बलिदान की ओर संकेत करता हुआ पाते हैं। एक बार फिर से मेम्ने के बलिदान का उपयोग – यह दिखाने के लिए किया गया है कि यह यीशु के बलिदान की ओर संकेत करती हुई – घटना का एक संयोग मात्र नहीं है। दो भिन्न तरीकों से (स्थान के द्वारा और समय के द्वारा) पवित्र इब्रानी वेदों में दिए हुए दो अति महत्वपूर्ण त्योहार यीशु के बलिदान की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं। मैं इतिहास में किसी भी अन्य व्यक्ति के बारे में नहीं सोच सकता हूँ जिसकी मृत्यु की प्रतिछाया इस तरह से नाटकीय तरीके में इस तरह की समानताओं के साथ दी गई हो। क्या आप सोच सकते हैं?

यह चिन्ह इसलिए दिए गए हैं कि हम उस पर आश्वस्त हो सकें कि यीशु का बलिदान वास्वत में परमेश्‍वर की ओर से योजनाबद्ध और ठहराया हुआ था। यह उदाहरण के रूप में दिया हुआ है ताकि हम यह कल्पना कर सकें कि कैसे यीशु का बलिदान हमें मृत्यु से बचाता है और पाप से शुद्ध करता है –परमेश्‍वर की ओर से उन सभों को दिया हुआ उपहार है जिसे सभी प्राप्त कर सकते हैं।