कैसे मानव जाति आगे बढ़ती रही – मनु (या नूह) के वृतान्त से सबक

हमारी पिछली पोस्ट अर्थात् लेख में हमने यह देखा था कि मोक्ष की प्रतिज्ञा मानवीय इतिहास के बिल्कुल ही आरम्भ में दे दी गई थी।

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आरम्भ से ही – मोक्ष की प्रतिज्ञा

मेरे पिछले कुछ लेखों में मैंने यह देखा कि कैसे उसकी आरम्भिक रची हुई अवस्था से पाप में गिर कर मनुष्य पतित हो गया। परन्तु

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भ्रष्ट (भाग 2)… आपने निशाने से चूक जाना

मेरे पिछले लेख में मैंने यह देखा था कि कैसे वेद पुस्तक (बाइबल) हमें यह विवरण देती है कि हम परमेश्‍वर के वास्तविक स्वरूप जिसमें

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परन्तु पृथ्वी-के-मध्य में रहने वाले – ओर्कस् की तरह भ्रष्ट

मेरे पिछले लेख में मैंने बाइबल आधारित उस नींव को देखा था कि – कैसे हमें यह देखना चाहिए कि हम परमेश्वर के स्वरूप में

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परमेश्‍वर के स्वरूप में

हमने पहले ही देख लिया है कि कैसे पुरूषासूक्ता का आरम्भ समय के आरम्भ होने से पहले होता है और यह कैसे परमेश्‍वर की मनसा

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पुरूषा का बलिदान: सभी वस्तुओं की उत्पत्ति

श्लोक 3 और 4 के पश्चात् पुरूषासूक्ता अपने घ्यान को पुरूषा के गुणों की ओर से पुरूषा के बलिदान के ऊपर केन्द्रित करता है। श्लोक

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श्लोक 3 एवं 4 – पुरूषा का देहधारण

पुरूषासूक्ता श्लोक 2 से आगे निम्न बातों के साथ जारी रहता है। (संस्कृति का भाषान्तरण और पुरूषा के ऊपर मेरे बहुत से विचार जोसफ़ पदनीज़ेरकारा

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श्लोक 2- पुरूषा अमरत्व का प्रभु है

हमने पुरूषासूक्ता के प्रथम श्लोक में देखा कि पुरूषा का विवरण अच्छी तरह से सर्व-ज्ञानी, सर्व-सामर्थी और सर्व-व्यापी के रूप में वर्णित किया गया था।

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पुरूषासूक्ता पर ध्यान देना – पूरूषा की स्तुति का भजन

कदाचित् ऋग्वेद की सबसे प्रसिद्ध कविता या प्रार्थना पुरूषासूक्ता (पुरूषा सुक्तम्) है। यह 90वें अध्याय और 10वें मंडल में पाई जाती है। यह एक विशेष

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मोक्ष – कर्मों से स्वतंत्रता को प्राप्त करना

कर्म, गुरत्वाकर्षण की तरह ही, एक ऐसी व्यवस्था है जो कि आपके और मेरे ऊपर कार्यरत् है। कर्म का अर्थ बहुत सी बातें हो सकती

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