योम किप्पुर – वास्तविकता में दुर्गा पूजा

दुर्गा पूजा (या दुर्गोस्तव) दक्षिण एशिया के अधिकांश हिस्सों में आश्विन (अश्विनी) महीने में 6-10 दिनों तक मनाया जाता है। यह असुर महिषासुर के विरुद्ध एक प्राचीन लड़ाई में देवी दुर्गा के विजयी होने के स्मरण में मनाया जाता है। बहुत से भक्तों को यह एहसास नहीं है कि यह उससे भी अधिक प्राचीन त्योहार योम किप्पुर (या प्रायश्चित का दिन) के साथ मेल खाता है, जो 3500 वर्ष पहले आरम्भ हुआ था और इब्रानी वर्ष के चन्द्रमा आधारित पंचांग के सातवें महीने के 10 वें दिन मनाया जाता है। ये दोनों त्यौहार प्राचीन हैं, दोनों एक ही दिन (अपने सम्बन्धित पंचांग के अनुसार आते हैं। हिन्दू और इब्रानी पंचांग में विभिन्न वर्षों में अतिरिक्त लीप-के-महीने होते हैं, इसलिए वे सदैव पश्चिमी पंचांग से मेल नहीं खाते हैं, परन्तु वे दोनों सदैव सितंबर-अक्टूबर में आते हैं), में बलिदान को सम्मिलित करते हैं, और दोनों ही बड़ी विजय को स्मरण करते हुए उत्सव को मनाते हैं। दुर्गा पूजा और योम किप्पुर के बीच समानताएं आश्चर्यचकित करने वाली हैं। कुछ अन्तर समान रूप से उल्लेखनीय हैं।

प्रायश्चित के दिन का परिचय

फिरौन के बन्धन में दास के रूप में मिस्र में रहते हुए
मूसा और उसके भाई हारून ने इस्राएलियों (इब्रानी या यहूदी) का नेतृत्व किया और यीशु के आने से लगभग 1500 वर्षों पहले व्यवस्था को प्राप्त किया।

हमने देखा कि श्री मूसा ने इस्राएलियों (इब्रानियों या यहूदियों) को गुलामी से बाहर निकाला और कलियुग में इस्राएलियों का मार्गदर्शन देने के लिए दस आज्ञाओं को प्राप्त किया। ये दस आज्ञाएँ बहुत अधिक कठोर थी, जिनका पालन करना पाप द्वारा प्रलोभित एक व्यक्ति के लिए असंभव था। इन आज्ञाओं को एक विशेष सन्दूक में रखा गया था, जिसे वाचा का सन्दूक कहा जाता था। वाचा का सन्दूक  एक विशेष मंदिर में था जिसे महा पवित्र स्थान  कहा जाता था। 

मूसा के भाई हारून और उसके वंशज याजक अर्थात् पुरोहित थे, जो इस मंदिर में लोगों के पापों का प्रायश्चित करने या उन्हें ढकने के लिए बलिदान दिया करते थे। योम किप्पुर – प्रायश्चित के दिन  विशेष बलिदानों को चढ़ाया जाता था। आज ये हमें गहरी शिक्षा देते हैं, और हम दुर्गा पूजा के समारोहों के साथ प्रायश्चित के दिन (योम किप्पुर) की तुलना करके बहुत कुछ सीख सकते हैं। 

प्रायश्चित का दिन और बलि का बकरा

इब्रानी वेद, अर्थात् आज की बाइबल ने मूसा के समय से प्रायश्चित के दिन  के बलिदानों और अनुष्ठानों के बारे में सटीक निर्देश दिए हैं। हम देखते हैं कि ये निर्देश कैसे शुरू होते हैं:

हारून के दो पुत्र यहोवा को सुगन्ध भेंट चढ़ाते समय मर गए थे। फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “अपने भाई हारून से बात करो कि वह जब चाहे तब पर्दे के पीछे महापवित्र स्थान में नहीं जा सकता है। उस पर्दे के पीछे जो कमरा है उसमें पवित्र सन्दूक रखा है। उस पवित्र सन्दूक के ऊपर उसका विशेष ढक्कन लगा है। उस विशेष ढक्कन के ऊपर एक बादल में मैं प्रकट होता हूँ। यदि हारून उस कमरे में जाता है तो वह मर जायेगा!

लैव्यव्यवस्था 16:1-2

प्रधान पुरोहित अर्थात् महायाजक हारून के दो पुत्रों की मृत्यु इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने अनादर के साथ मंदिर के महा पवित्र स्थान  में प्रवेश किया था जहाँ यहोवा परमेश्वर की उपस्थिति थी। उस पवित्र उपस्थिति में दस आज्ञाओं को पूरी तरह से निभाने में उनकी विफलता के परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हुई।

इसलिए पूरे वर्ष में एकमात्र  उसी विशेष दिन के लिए सावधानीपूर्वक निर्देश दिए गए, जब महायाजक महा पवित्र स्थान – में प्रायश्चित के दिन  प्रवेश कर सकता था। यदि वह किसी अन्य दिन में प्रवेश करता, तो वह मर जाता। परन्तु इस दिन भी, इससे पहले कि महायाजक वाचा के सन्दूक  की उपस्थिति में प्रवेश करे, उसे यह करना पड़ता था:

“पाप से निस्तार के दिन पवित्र स्थान में जाने के पहले हारून को पापबलि के रूप में एक बछड़ा और होमबलि के लिए एक मेढ़ा भेंट करना चाहिए। हारून अपने पूरे शरीर को पानी डालकर धोएगा। तब हारून इन वस्त्रों को पहनेगा: हारून पवित्र सन के वस्त्र पहनेगा। सन के निचले वस्त्र शरीर से सटे होगें। उसकी पेटी सन का पटुका होगी। हारून सन की पगड़ी बाँधेगा। ये पवित्र वस्त्र हैं।

लैव्यव्यवस्था 16:3-4

सप्तमी के दिन दुर्गा पूजा के समय, दुर्गा को प्राण प्रतिष्ठा  करके मूर्तियों में आने के लिए आह्वान किया जाता है और मूर्ति को स्नान कराया जाता है और उसे कपड़े पहनाए जाते हैं। योम किप्पुर में भी स्नान किया जाना सम्मिलित था परन्तु यह महायाजक था जो स्नान करता था और महा पवित्र स्थान में प्रवेश करने के लिए तैयार होता था न कि देवता। यहोवा परमेश्वर को आने के लिए आह्वान करना अनावश्यक था – क्योंकि उसकी उपस्थिति पूरे वर्ष में महा पवित्र स्थान में बनी रहती थी। इसकी अपेक्षा आवश्यकता इस उपस्थिति से मिलने के लिए तैयार रहने की थी। स्नान करने और कपड़े पहनने के बाद महायजाक को बलिदान के लिए जानवरों को लाना पड़ता था।

“हारून को इस्राएल के लोगों से दो बकरे पापबलि के रूप में और एक मेढ़ा होमबलि के लिए लेना चाहिए। तब हारून बैल की पापबलि चढ़ाएगा। यह पापबलि उसके अपने लिए और उसेक परिवार के लिए है। तब हारून वह उपासना करेगा जिसमें वह और उसका परिवार शुद्ध होंगे।

लैव्यव्यवस्था 16:5-6

हारून के अपने पापों को ढकने या प्रायश्चित करने के लिए एक मेढ़े या बैल का बलिदान करना पड़ता था। दुर्गा पूजा के समय में भी कभी-कभी बैल या बकरे की बलि दी जाती है। योम किप्पुर के लिए महायाजक को अपने पाप को ढकने के लिए बैल का बलिदान दिया जाना एक विकल्प नहीं था। यदि महायाजक अपने पाप को बैल के बलिदान के साथ नहीं ढकता है तो वह मर जाएगा।

फिर तुरन्त बाद, याजक अर्थात् पुरोहित दो बकरियों के बलिदान दिए जाने का उल्लेखनीय अनुष्ठान करता है।

“इसके बाद हारून दो बकरे लेगा और मिलापवाले तमबू के द्वार पर यहोवा के सामने लाएगा। हारून दोनों बकरों के लिए चिट्ठी डालेगा। एक चिट्ठी यहोवा के लिए होगी। दूसरी चिट्ठी अजाजेल के लिए होगी। “तब हारून चिट्ठी डालकर यहोवा के लिए चुने गए बकरे की भेंट चढ़ाएगा। हारून को इस बकरे को पापबलि के लिये चढ़ाना चाहिए।

लैव्यव्यवस्था 16:7-9

एक बार जब बैल को अपने पापों के लिए बलिदान कर दिया जाता था, तब पुरोहित दो बकरियों को ले जाता था और उनके नाम से चिट्ठी डालता था। एक बकरी को बलि का बकरे  के रूप में मनोनीत किया जाता था। दूसरे बकरे को पापबलि के रूप में चढ़ाया जाता था। ऐसा क्यों था?

15 “तब हारून को लोगों के लिए पापबलि स्वरूप बकरे को मारना चाहिए। हारून को बकरे का खून पर्दे के पीछे कमरे में लाना चाहिए। हारून को बकरे के खून से वैसा ही करना चाहिए जैसा बैल के खून से उसने किया। हारून को उस ढक्कन पर और ढक्कन के साने बकरे का खून छिड़कना चाहिए। 16 ऐसा अनेक बार हुआ जब इस्राएल के लोग अशुद्ध हुए। इसलिए हारून इस्राएल के लोगों के अपराध और पाप से महापवित्र स्थान को शुद्ध करने के लिए उपासना करेगा। हारून को ये काम क्यों करना चाहिए क्योंकि मिलापवाला तम्बू अशुद्ध लोगों के बीच में स्थित है।

लैव्यव्यवस्था 16:15-16

बलि के बकरे का क्या होता था?

20 “हारून महापवित्र स्थान, मिलापवाले तम्बू तथा वेदी को पवित्र बनाएगा। इन कामों के बाद हारून यहोवा के पास बकरे को जीवित लाएगा। 21 हारून अपने दोनों हाथों को जीवित बकरे के सिर पर रखेगा। तब हारून बकरे के ऊपर इस्राएल के लोगों के अपराध और पाप को कबूल करेगा। इस प्रकार हारून लोगों के पापों को बकरे के सिर पर डालेगा। तब वह बकरे को दूर मरुभूमि में भेजेगा. एक व्यक्ति बगल में बकरे को ले जाने के लिए खड़ा रहेगा। 22 इस प्रकार बकरा सभी लोगों के पाप अपने ऊपर सूनी मरुभूमि में ले जाएगा। जो व्यक्ति बकरे को ले जाएगा वह मरुभूमि में उसे खुला छोड़ देगा।

लैव्यव्यवस्था 16:20-22

बैल का बलिदान हारून के अपने पाप के लिए था। पहले बकरे की बलि इस्राएल के लोगों के पाप के लिए थी। हारून तब अपने हाथों को जीवित बलि के बकरे के ऊपर रखता था और – प्रतीकात्मक रूप से – बलि के बकरे के ऊपर लोगों के पापों को स्थानांतरित कर देता था। फिर इस बकरे को जंगल में एक संकेत के रूप में छोड़ दिया जाता था कि लोगों के पाप अब लोगों से दूर हो गए थे। इन बलिदानों से उनके पापों का प्रायश्चित हो जाता था। यह प्रत्येक वर्ष प्रायश्चित के दिन और केवल उसी दिन किया जाता था। 

प्रायश्चित का दिन और दुर्गा पूजा 

परमेश्वर ने इस त्योहार को प्रत्येक वर्ष इसी दिन में मनाने की आज्ञा क्यों दी? इसका क्या अर्थ था? दुर्गा पूजा उस समय की ओर मुड़कर देखती है जब दुर्गा ने भैंस दानव महिषासुर को पराजित किया था। यह अतीत में हुई एक घटना का स्मरण कराता है। प्रायश्चित के दिन ने भी विजय के स्मरण को मनाया था, परन्तु इस में भविष्यवाणी की गई थी कि यह आने वाले भविष्य  में बुराई के ऊपर होने वाली विजय  की ओर देखना था। यद्यपि वास्तविक पशुओं की बलि दी जाती थी, तौभी वे प्रतीकात्मक ही थे। वेद पुस्‍तक (बाइबल) बताती है कि 

क्योंकि साँड़ों और बकरों का लहू पापों को दूर कर दे, यह सम्भव नहीं है।

इब्रानियों 10:4

चूंकि प्रायश्चित के दिन बलिदान वास्तव में पुजारी अर्थात् याजक और भक्तों के पापों को दूर नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्हें प्रत्येक वर्ष चढ़ाए जाता था? वेद पुस्‍तक (बाइबल) बताती है कि

 व्यवस्था का विधान तो आने वाली उत्तम बातों की छाया मात्र प्रदान करता है। अपने आप में वे बातें यथार्थ नहीं हैं। इसलिए उन्हीं बलियों के द्वारा जिन्हें निरन्तर प्रति वर्ष अनन्त रूप से दिया जाता रहता है, उपासना के लिए निकट आने वालों को सदा-सदा के लिए सम्पूर्ण सिद्ध नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा हो पाता तो क्या उनका चढ़ाया जाना बंद नहीं हो जाता? क्योंकि फिर तो उपासना करने वाले एक ही बार में सदा सर्वदा के लिए पवित्र हो जाते। और अपने पापों के लिए फिर कभी स्वयं को अपराधी नहीं समझते।किन्तु वे बलियाँ तो बस पापों की एक वार्षिक स्मृति मात्र हैं।

इब्रानियों 10:1-3

यदि बलिदान पापों को दूर कर सकते, तो उन्हें दोहराने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती। परन्तु उन्हें प्रत्येक वर्ष यह दिखाते हुए दोहराया गया कि वे प्रभावी नहीं थे।

परन्तु जब यीशु मसीह (येसु सत्संग) ने स्वयं को बलिदान के रूप में प्रस्तुत किया तो सब कुछ बदल गया।

इसलिए जब यीशु इस जगत में आया था तो उसने कहा था: “तूने बलिदान और कोई भेंट नहीं चाहा,
    किन्तु मेरे लिए एक देह तैयार की है।
तू किसी होमबलि से न ही
    पापबलि से प्रसन्न नहीं हुआ
तब फिर मैंने कहा था,
    ‘और पुस्तक में मेरे लिए यह भी लिखा है, मैं यहाँ हूँ।
    हे परमेश्वर, तेरी इच्छा पूरी करने को आया हूँ।’”

इब्रानियों 10:5-7

वह स्वयं को बलिदान के रूप में प्रस्तुत करने आया था। और जब उसने किया तो

… हम यीशु मसीह की देह के एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं।

इब्रानियों 10:10

दो बकरियों का बलिदान में दिया जाना प्रतीकात्मक रूप से यीशु के द्वारा भविष्य में दिए जाने वाले बलिदान और विजय की ओर संकेत कर रहे थे। क्योंकि उसका बलिदान हुआ इसलिए वह बलिदान का बकरा था। वह साथ ही बलि का बकरा भी था, क्योंकि उसने पूरे संसार के समुदाय के सारे पापों को अपने ऊपर ले लिया और उन्हें हमसे दूर कर दिया, ताकि हम शुद्ध हो सकें।

क्या प्रायश्चित का दिन दुर्गा पूजा का कारण है?

इस्राएल के इतिहास में हमने ध्यान दिया था कि कैसे इस्राएल से निर्वासित लोग भारत में 700 ईसा पूर्व में पहुंचने लगे थे, जिससे भारत की शिक्षा और धर्म में कई योगदान मिले। इन इस्राएलियों ने सातवें महीने के 10 वें दिन प्रत्येक दिन प्रायश्चित के दिन का त्यौहार मनाया होगा। शायद, जिस तरह से उन्होंने भारत की बहुत सारी भाषाओं में योगदान दिया, उसी तरह हो सकता है कि उन्होंने अपने प्रायश्चित के दिन का भी योगदान दिया हो, जोकि कालांतर में दुर्गा पूजा बन गया, जो बुराई पर एक बड़ी विजय का स्मरण था। यह दुर्गा पूजा के प्रति हमारी ऐतिहासिक समझ के साथ मेल खाता है, जिसे लगभग 600 ईसा पूर्व मनाया जाने लगा।

प्रायश्चित के दिन का मनाया जाना कब बन्द हुआ

हमारी ओर से दिया गया यीशु (येसु सत्संग) का बलिदान प्रभावी और पर्याप्त था। क्रूस पर यीशु के बलिदान (33 ईस्वी सन्) के तुरंत बाद, रोमियों ने 70 ईस्वी सन् में महा पवित्र स्थान के साथ मंदिर को नष्ट कर दिया। तब से यहूदियों ने प्रायश्चित के दिन फिर कभी  कोई बलिदान नहीं दिया। आज, यहूदी इस दिन इस त्योहार को उपवास के साथ मनाते हैं। जैसा कि वेद पुस्तक (बाइबल) बताती है, एक बार जब प्रभावी बलिदान को चढ़ा दिया जाता है, तो फिर आगे के लिए वार्षिक बलिदान की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है। इसलिए परमेश्वर ने इसे रोक दिया। 

दुर्गा पूजा और प्रायश्चित के दिन में स्वरूप

दुर्गा पूजा में दुर्गा के स्वरूप को आने के लिए आह्वान किया जाता है ताकि देवी मूर्ति में निवास करें। प्रायश्चित का दिन आने वाले बलिदान का एक पूर्वकथन था और जिस में किसी भी स्वरूप को आने के लिए आह्वान नहीं किया गया था। महा पवित्र स्थान में परमेश्वर अदृश्य था और इस प्रकार उसका कोई स्वरूप नहीं था।

परन्तु प्रभावी होने वाले बलिदान में, आने वाले सैकड़ों वर्षों में कई प्रायश्चितों के दिनों  की ओर संकेत किया गया था, एक स्वरूप का आह्वान किया गया था। जैसा कि वेद पुस्‍तक (बाइबल) बताती है

15 वह अदृश्य परमेश्वर का
    दृश्य रूप है।
    वह सारी सृष्टि का सिरमौर है।

कुलुस्सियों 1:15

प्रभावी होने वाले बलिदान में, अदृश्य परमेश्वर के स्वरूप को आमंत्रित किया गया था और उसे यीशु के रूप में दिखाया गया था।

पुर्नमूल्यांकन करना

हम वेद पुस्तक (बाइबल) का अध्ययन कर रहे हैं। हमने देखा है कि कैसे परमेश्वर ने अपनी योजना को प्रकट करने के लिए कई संकेत दिए थे। आरम्भ में उसने आने वाले ‘पुरूष’ की भविष्यद्वाणी की। इसके बाद श्री अब्राहम का बलिदान, फसह का बलिदान और प्रायश्चित का दिन की भी भविष्यद्वाणी की। इस्राएलियों के ऊपर मूसा के आशीर्वाद और शाप बने हुए हैं। जो इस्राएलियों के इतिहास की गति देने के लिए उन्हें पूरे संसार, यहां तक ​​कि भारत में बिखराते हुए स्थापित करेंगे, जैसा कि यहां बताया गया है