पुनरुत्थान प्रथम फल: आपके लिए जीवन

हम हिंदू कैलेंडर अर्थात् पंचांग के अनुसार अंतिम पूर्णिमा के दिन होली के उत्सव को मनाते हैं। अपने चन्द्र-सौर मूल के पंचांग के साथ, होली पश्चिमी कैलेंडर के चारों ओर घूमती रहती है, जिसके कारण यह सामान्य रूप से मार्च में, वसंत के आगमन के समय एक आनन्द के त्योहार के रूप में आती है। यद्यपि कई लोग होली के उत्सव को मनाते हैं, तथापि कुछ ही को पता है कि यह प्रथम फल  के त्योहार, और इसके बाद में मनाए जाने वाले ईस्टर अर्थात् पुनरुत्थान के त्योहार के समानांतर पाया जाने वाला एक त्योहार है। ये उत्सव वसंत ऋतु के पूर्ण चंद्रमाओं पर आधारित होते हैं और इसलिए अक्सर आपस में मेल खाते हैं।

होली का उत्सव

लोग होली को वसंत ऋतु के उल्लासपूर्ण त्योहार, प्रेम का त्योहार या रंगों का त्योहार के रूप में मनाते हैं। इस उत्सव को मनाने का सबसे मुख्य उद्देश्य वसंत ऋतु के आरम्भ में होने वाली फसल की कटनी है। पारम्परिक साहित्य, होली की पहचान एक त्योहार के रूप में करता है, जो वसंत ऋतु में होने वाली फसल की बहुतायत वाली कटनी का उत्सव मनाता है।

होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है। होलिका दहन की शाम के बाद, होली (या रंग वाली होली, धुलेटी, धुलंडी, या फगवा) अगले दिन तक चलती रहती है।

लोग एक दूसरे को रंग लगाकर होली मनाते हैं। वे पानी की बंदूकों और पानी से भरे गुब्बारों का उपयोग एक-दूसरे पर छोड़ने और उन्हें रंगने के लिए भी करते हैं। यह एक लड़ाई की तरह होता है, परन्तु रंगीन पानी के साथ। इसे बिना किसी पक्षपात के साथ, दोस्त या अनजान, धनी या निर्धन, पुरुष या स्त्री, बच्चे या बुजुर्ग के साथ खेला जाता है। रंग असाधारण रूप से खुली सड़कों, पार्कों, मंदिरों और भवनों के बाहर एक दूसरे पर डाला जाता है। भिन्न झुण्ड स्थान-स्थान पर ढोल-नगाड़े और वाद्य यंत्र लेकर चलते हैं, गाते हैं और नाचते हैं। दोस्त और दुश्मन एक दूसरे पर रंगीन पाऊडर फेंकने के लिए एक साथ इक्ट्ठे हो जाते हैं, हँसते हैं, गपशप मारते हैं, फिर होली के व्यंजनों, भोजन और पेय पदार्थों को एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं। देर सुबह तक, हर कोई रंगों की चित्रकारी से भरा हुआ दिखाई देता है, इसलिए इसका नाम “त्योहारों का रंग” है।

कदाचित् होली का सबसे अनूठा विरोधाभास समाजिक भूमिका में उलट-फेर का होना है। शौचालय को साफ करने वाला एक व्यक्ति एक ब्राह्मण व्यक्ति पर रंग डाल सकता है और यही त्योहार की भूमिका में उलट होने का एक समाजिक हिस्सा है। माता-पिता और बच्चों, भाई-बहनों, पड़ोसियों और विभिन्न जातियों के बीच प्यार और सम्मान के पारंपरिक भाव सभी कुछ इसमें उलट मिलते हैं।

होली संबंधी पौराणिक कथा

होली को लेकर कई पौराणिक कथाएँ पाई जाती हैं। होलिका दहन से आगे बढ़ती हुई कहानी राजा हिरण्यकशिपु के भाग्य से संबंधित है, जिसने अपनी विशेष शक्तियों के साथ प्रह्लाद को मारने के लिए साजिश रची थी। वह उसे किसी भी रीति से नही मार सका: न तो मनुष्य द्वारा और न ही जानवर के द्वारा, न तो घर के अंदर और न ही सड़क पर, न तो दिन के समय में और न ही रात के समय में, न तो किसी फेंक जाने वाले हथियार के द्वारा और न ही हाथ में पकड़े जाने वाले हथियार के द्वारा, न तो जमीन पर, और न ही पानी या हवा पर। होलिका द्वारा प्रह्लाद को जलाने का प्रयास में नाकाम होने के बाद, विष्णु नरसिंह के रूप में, हिरण्यकशिपु को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर (जो न घर का बाहर था न भीतर), गोधूलि बेला में (न दिन और न ही रात में), आधा मनुष्य, आधा शेर (जो न नर था न पशु), अपनी गोद (न तो भूमि पर, न ही हवा और पानी में) में रखते हुए अपने लंबे तेज़ नाखूनों से (जो न अस्त्र थे न शस्त्र था) मार डाला। इस तरह कहानी में होली बुराई पर अच्छाई के उत्सव को मनाती है।

इसी तरह से, प्रथम फल एक जीत के उत्सव को मनाता है, परन्तु एक दुष्ट राजा के ऊपर नहीं, अपितु स्वयं मृत्यु के ऊपर। सुसमाचार बताते हैं कि प्रथम फल, जिसे अब ईस्टर संडे  अर्थात् पुनुरुत्थान वाले ईतवार के रूप में जाना जाता है, इसे स्पष्ट करता है, कि यह आपको और मुझे नया जीवन प्रदान करता है।

प्राचीन इब्रानी वेद त्योहार

हमने पिछले सप्ताह यीशु की दैनिक घटनाओं का अनुसरण किया। सप्ताह के सातवें दिन, सब्त के दिन मृत्यु प्राप्त करते हुए, उसे एक पवित्र यहूदी त्योहार फसह के दिन क्रूसित किया गया था। परमेश्वर ने इन पवित्र दिनों को इब्रानी वेदों में बहुत पहले से स्थापित किया था। इन निर्देशों में हमें ऐसे मिलता है:

यहोवा ने मूसा के कहा, “इस्राएल के लोगों से कहोः तुम यहोवा के निश्चित पर्वों को पवित्र घोषित करो। ये मेरे विशेष पवित्र दिन हैं:

सब्त

“छ: दिन काम करो। किन्तु सातवाँ दिन, आराम का एक विशेष दिन या पवित्र मिलन का दिन होगा। उस दिन तुम्हें कोई काम नहीं करना चाहिए। यह तुम्हारे सभी घरों में यहोवा का सब्त है।

फ़सह पर्व

“ये यहोवा के चुने हुए पवित्र दिन हैं। उनके लिए निश्चित समय पर तुम पवित्र सभाओं की घोषणा करोगे। यहोवा का फसह पर्व पहले महीने की चौदह तारीख को सन्धया काल में है:

लैव्यव्यवस्था 23:1-5

क्या यह उत्सुकता की बात नहीं है कि यीशु का क्रूस पर चढ़ना और मृत्यु प्राप्त करना दोनों ही इन दो पवित्र त्योहारों के दिन घटित हुआ जो कि 1500 वर्षों पहले से निर्धारित किए गए थे?

क्यों? इसका क्या अर्थ है?

यीशु का क्रूसीकरण (दिन 6) में घटित हुआ और उसका मृत्यु में विश्राम करना सब्त (दिन 7) में घटित हुआ था

प्राचीन इब्रानी वेद त्योहारों के साथ आगे बढ़ता रहता है। फसह और सब्त के बाद का अगला त्यौहार ‘प्रथम फल’ था। इब्रानी वेदों ने इसके लिए निम्न निर्देशों को दिया था।

इब्रानी प्रथम फल उत्सव

9फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 10“इस्राएलियों से कह कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जिसे यहोवा तुम्हें देता है और उसमें के खेत काटो, तब अपने अपने पके खेत की पहली उपज का पूला याजक के पास ले आया करना; 11और वह उस पूले को यहोवा के सामने हिलाए, कि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहण किया जाए; वह उसे विश्रामदिन के दूसरे दिन हिलाए।

लैव्यव्यवस्था 23:9-11

14 जब तक तुम अपने परमेश्वर को भेंट नहीं चढ़ाते, तब तक तुम्हें कोई नया अन्न, या फल या नये अन्न से बनी रोटी नहीं खानी चाहिए। यह नियम तुम चाहे जहाँ भी रहो, तुम्हारी पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहेगा।

लैव्यव्यवस्था 23:14

फसह के ‘विश्रामदिन के दूसरे दिन’ के बाद का दिन एक तीसरा पवित्र त्योहार, प्रथम फल था। हर वर्ष इस दिन महायाजक पवित्र मंदिर में प्रवेश करता था और प्रभु परमेश्वर को पहले वसंत के अनाज की फसल को प्रस्तुत करता था। जैसा कि होली के साथ है, यह सर्दियों के बाद नए जीवन के आरम्भ का संकेत लोगों को बहुतायत से मिलने वाली फसल से मिलने वाले भोजन से होने वाली संतुष्टि की ओर देखते हुए देता है।

सब्त के ठीक एक दिन बाद जब यीशु ने मृत्यु में विश्राम किया, नए सप्ताह का रविवार, निसान 16 है। सुसमाचार लिपिबद्ध करते हैं कि उस दिन क्या घटित हुआ जब महायाजक नए जीवन के संकेत देने वाले ‘प्रथम फल’ को देने के लिए मंदिर में जाते थे।

यीशु मृतकों में से जी उठा था

सप्ताह के पहले दिन बहुत सवेरे ही वे स्त्रियाँ कब्र पर उस सुगंधित सामग्री को, जिसे उन्होंने तैयार किया था, लेकर आयीं। उन्हें कब्र पर से पत्थर लुढ़का हुआ मिला। सो वे भीतर चली गयीं किन्तु उन्हें वहाँ प्रभु यीशु का शव नहीं मिला। जब वे इस पर अभी उलझन में ही पड़ी थीं कि, उनके पास चमचमाते वस्त्र पहने दो व्यक्ति आ खड़े हुए। डर के मारे वे धरती की तरफ अपने मुँह लटकाये हुए थीं। उन दो व्यक्तियों ने उनसे कहा, “जो जीवित है, उसे तुम मुर्दों के बीच क्यों ढूँढ रही हो? वह यहाँ नहीं है। वह जी उठा है। याद करो जब वह अभी गलील में ही था, उसने तुमसे क्या कहा था। उसने कहा था कि मनुष्य के पुत्र का पापियों के हाथों सौंपा जाना निश्चित है। फिर वह क्रूस पर चढ़ा दिया जायेगा और तीसरे दिन उसको फिर से जीवित कर देना निश्चित है।” तब उन स्त्रियों को उसके शब्द याद हो आये। वे कब्र से लौट आयीं और उन्होंने ये सब बातें उन ग्यारहों और अन्य सभी को बतायीं। 10 ये स्त्रियाँ थीं मरियम-मग्दलीनी, योअन्ना और याकूब की माता, मरियम। वे तथा उनके साथ की दूसरी स्त्रियाँ इन बातों को प्रेरितों से कहीं। 

11 पर उनके शब्द प्रेरितों को व्यर्थ से जान पड़े। सो उन्होंने उनका विश्वास नहीं किया। 12 किन्तु पतरस खड़ा हुआ और कब्र की तरफ़ दौड़ आया। उसने नीचे झुक कर देखा पर उसे सन के उत्तम रेषम से बने कफन के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई दिया था। फिर अपने मन ही मन जो कुछ हुआ था, उस पर अचरज करता हुआ वह चला गया।[a] इम्माऊस के मार्ग पर 13 उसी दिन उसके शिष्यों में से दो, यरूशलेम से कोई सात मील दूर बसे इम्माऊस नाम के गाँव को जा रहे थे। 14 जो घटनाएँ घटी थीं, उन सब पर वे आपस में बातचीत कर रहे थे। 15 जब वे उन बातों पर चर्चा और सोच विचार कर रहे थे तभी स्वयं यीशु वहाँ आ उपस्थित हुआ और उनके साथ-साथ चलने लगा। 16 (किन्तु उन्हें उसे पहचानने नहीं दिया गया।) 17 यीशु ने उनसे कहा, “चलते चलते एक दूसरे से ये तुम किन बातों की चर्चा कर रहे हो?” वे चलते हुए रुक गये। वे बड़े दुखी दिखाई दे रहे थे। 18 उनमें से किलयुपास नाम के एक व्यक्ति ने उससे कहा, “यरूशलेम में रहने वाला तू अकेला ही ऐसा व्यक्ति होगा जो पिछले दिनों जो बातें घटी हैं, उन्हे नहीं जानता।” 19 यीशु ने उनसे पूछा, “कौन सी बातें?” उन्होंनें उससे कहा, “सब नासरी यीशु के बारे में हैं। यह एक ऐसा व्यक्ति था जिसने जो किया और कहा वह परमेश्वर और सभी लोगों के सामने यह दिखा दिया कि वह एक महान् नबी था। 20 और हम इस बारें में बातें कर रहे थे कि हमारे प्रमुख याजकों और शासकों ने उसे कैसे मृत्यु दण्ड देने के लिए सौंप दिया। और उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ा दिया। 

21 हम आशा रखते थे कि यही वह था जो इस्राएल को मुक्त कराता। “और इस सब कुछ के अतिरिक्त इस घटना को घटे यह तीसरा दिन है। 22 और हमारी टोली की कुछ स्त्रियों ने हमें अचम्भे में डाल दिया है। आज भोर के तड़के वे कब्र पर गयीं। 23 किन्तु उन्हें, उसका शव नहीं मिला। वे लौटीं और हमें बताया कि उन्होंने स्वर्गदूतों का दर्शन पाया है जिन्होंने कहा था कि वह जीवित है। 24 फिर हम में से कुछ कब्र पर गये और जैसा स्त्रियों ने बताया था, उन्होंने वहाँ वैसा ही पाया। उन्होंने उसे नहीं देखा।” 25 तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम कितने मूर्ख हो और नबियों ने जो कुछ कहा, उस पर विश्वास करने में कितने मंद हो। 26 क्या मसीह के लिये यह आवश्यक नहीं था कि वह इन यातनाओं को भोगे और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करे?” 27 और इस तरह मूसा से प्रारम्भ करके सब नबियों तक और समूचे शास्त्रों में उसके बारे में जो कहा गया था, उसने उसकी व्याख्या करके उन्हें समझाया। 28 वे जब उस गाँव के पास आये, जहाँ जा रहे थे, यीशु ने ऐसे बर्ताव किया, जैसे उसे आगे जाना हो। 29 किन्तु उन्होंने उससे बलपूर्वक आग्रह करते हूए कहा, “हमारे साथ रुक जा क्योंकि लगभग साँझ हो चुकी है और अब दिन ढल चुका है।” सो वह उनके साथ ठहरने भीतर आ गया। 30 जब उनके साथ वह खाने की मेज पर था तभी उसने रोटी उठाई और धन्यवाद किया। फिर उसे तोड़ कर जब वह उन्हें दे रहा था 

31 तभी उनकी आँखे खोल दी गयीं और उन्होंने उसे पहचान लिया। किन्तु वह उनके सामने से अदृश्य हो गया। 32 फिर वे आपस में बोले, “राह में जब वह हमसे बातें कर रहा था और हमें शास्त्रों को समझा रहा था तो क्या हमारे हृदय के भीतर आग सी नहीं भड़क उठी थी?” 33 फिर वे तुरंत खड़े हुए और वापस यरूशलेम को चल दिये। वहाँ उन्हें ग्यारहों प्रेरित और दूसरे लोग उनके साथ इकट्ठे मिले, 34 जो कह रहे थे, “हे प्रभु, वास्तव में जी उठा है। उसने शमौन को दर्शन दिया है।” 35 फिर उन दोनों ने राह में जो घटा था, उसका ब्योरा दिया और बताया कि जब उसने रोटी के टुकड़े लिये थे, तब उन्होंने यीशु को कैसे पहचान लिया था। यीशु का अपने शिष्यों के सामने प्रकट होना 36 अभी वे उन्हें ये बातें बता ही रहे थे कि वह स्वयं उनके बीच आ खड़ा हुआ और उनसे बोला, “तुम्हें शान्ति मिले।” 37 किन्तु वे चौंक कर भयभीत हो उठे। उन्होंने सोचा जैसे वे कोई भूत देख रहे हों। 38 किन्तु वह उनसे बोला, “तुम ऐसे घबराये हुए क्यों हो? तुम्हारे मनों में संदेह क्यों उठ रहे हैं? 39 मेरे हाथों और मेरे पैरों को देखो। मुझे छुओ, और देखो कि किसी भूत के माँस और हड्डियाँ नहीं होतीं और जैसा कि तुम देख रहे हो कि, मेरे वे हैं।” 40 यह कहते हुए उसने हाथ और पैर उन्हें दिखाये। 

41 किन्तु अपने आनन्द के कारण वे अब भी इस पर विश्वास नहीं कर सके। वे भौंचक्के थे सो यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है?” 42 उन्होंने पकाई हुई मछली का एक टुकड़ा उसे दिया। 43 और उसने उसे लेकर उनके सामने ही खाया। 44 फिर उसने उनसे कहा, “ये बातें वे हैं जो मैंने तुमसे तब कही थीं, जब मैं तुम्हारे साथ था। हर वह बात जो मेरे विषय में मूसा की व्यवस्था में नबियों तथा भजनों की पुस्तक में लिखा है, पूरी होनी ही हैं।” 45 फिर पवित्र शास्त्रों को समझने केलिये उसने उनकी बुद्धि के द्वार खोल दिये। 46 और उसने उनसे कहा, “यह वही है, जो लिखा है कि मसीह यातना भोगेगा और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा। 47-48 और पापों की क्षमा के लिए मनफिराव का यह संदेश यरूशलेम से आरंभ होकर सब देशों में प्रचारित किया जाएगा। तुम इन बातों के साक्षी हो।   

लूका 24:1-48

प्रथम फल संबंधी यीशु की विजय

यीशु ‘प्रथम फल’ के पवित्र दिन में मृत्यु पर जय को प्राप्त करता है, एक ऐसा कारनामा जिसे उसके शत्रुओं और उसके शिष्यों दोनों ने ही असंभव माना था। जैसा कि होली बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाती है, इस दिन यीशु की जीत अच्छाई पर जीत थी।

54सो जब यह नाशमान देह अविनाशी चोले को धारण कर लेगी और वह मरणशील काया अमर चोले को ग्रहण कर लेगी तो शास्त्र का लिखा यह पूरा हो जायेगा:

“विजय ने मृत्यु को निगल लिया है।”

55 “हे मृत्यु तेरी विजय कहाँ है?
ओ मृत्यु, तेरा दंश कहाँ है?”56 पाप मृत्यु का दंश है और पाप को शक्ति मिलती है व्यवस्था से।

1कुरिन्थियों 15:54-56

जैसा कि हम उलट भूमिका के माध्यम से होली को मनाते हैं, ‘प्रथम फल’ भूमिका में सबसे बड़े उलट-फेर को ले आया। पहले मृत्यु का मानव जाति पर पूर्ण अधिकार था। अब यीशु ने मृत्यु की प्रभुता पर जय पा ली है। उसने उस शक्ति को उलट दिया था। जैसे कि नरसिंह ने हिरण्यकश्यपु की शक्तियों के विरुद्ध एक आरम्भ पाया था, यीशु ने पाप के बिना मरते हुए, एक अजेय मृत्यु को पराजित करने के आरम्भ को पाया।

आपके और मेरे लिए विजय

परन्तु यह यीशु के लिए ही केवल एक जीत नहीं थी। यह आपके और मेरे लिए भी प्रथम फल  के साथ घटित होने वाले इसके समय की गारंटी देते हुए जीत है। बाइबल बताती है कि:

20 किन्तु अब वास्तविकता यह है कि मसीह को मरे हुओं में से जिलाया गया है। वह मरे हुओं की फ़सह का पहला फल है। 21 क्योंकि जब एक मनुष्य के द्वारा मृत्यु आयी तो एक मनुष्य के द्वारा ही मृत्यु से पुनर्जीवित हो उठना भी आया। 22 क्योंकि ठीक वैसे ही जैसे आदम के कर्मों के कारण हर किसी के लिए मृत्यु आयी, वैसे ही मसीह के द्वारा सब को फिर से जिला उठाया जायेगा 23 किन्तु हर एक को उसके अपने कर्म के अनुसार सबसे पहले मसीह को, जो फसल का पहला फल है और फिर उसके पुनः आगमन पर उनको, जो मसीह के हैं। 24 इसके बाद जब मसीह सभी शासकों, अधिकारियों, हर प्रकार की शक्तियों का अंत करके राज्य को परम पिता परमेश्वर के हाथों सौंप देगा, तब प्रलय हो जायेगी। 25 किन्तु जब तक परमेश्वर मसीह के शत्रुओं को उसके पैरों तले न कर दे तब तक उसका राज्य करते रहना आवश्यक है। 26 सबसे अंतिम शत्रु के रूप में मृत्यु का नाश किया जायेगा।

1 कुरिन्थियों 15:20-26

यीशु ने प्रथम फल  पर जी उठा ताकि हम जान सकें कि वह हमें मृत्यु से अपने पुनरुत्थान में साझा करने के लिए आमंत्रित करता है। जैसे प्रथम फल के बाद में एक भरपूरी वाली फसल की अपेक्षा नए वसंत में की जाती है, वैसे ही यीशु का ‘प्रथम फल’ के दिन जी उठना बाद में होने वाले पुनरुत्थान की अपेक्षा को थामे हुए है, जो उनके लिए होगा जो उससे संबंधित है।

वसंत का बीज

या इसे इस तरह से सोचें। दिन 1 में यीशु स्वयं को ‘बीज’ कहता है। जैसा होली वसंत में बीज से नए जीवन के अंकुरित होने के उत्सव को मनाती है, वैसे ही होली यीशु के नए जीवन की ओर भी इंगित करती है, जो ‘बीज’ है जो वसंत में फिर से जी उठा था।

अगला विचार मनु है

बाइबल मनु की अवधारणा का उपयोग करके यीशु के पुनरुत्थान की भी व्याख्या करती है। आरंभिक वेदों में, मनु सभी मानव जाति के पूर्वज थे। हम सब उसकी सन्तान हैं। पुराण प्रत्येक कल्प या युग (इस कल्प में श्राद्धदेव मनु के रूप में अवतरित हैं) एक नए मनु को सम्मिलित करते हैं। इब्रानी वेद बताते हैं कि यह मनु आदम था, मानव जाति पर मृत्यु आने के पश्चात् क्योंकि यह उससे उसकी सन्तान पर आई थी सभों के ऊपर आ गई।

परन्तु यीशु अगला मनु है। मृत्यु पर अपनी विजय के साथ उसने एक नए कल्प का उद्घाटन किया। उसकी सन्तान के रूप में हम भी यीशु की तरह जी उठते हुए मृत्यु पर इस विजय में हिस्सा लेंगे। उसका पुनरुत्थान सबसे पहले हुआ और हमारा पुनरुत्थान बाद में आएगा। वह हमें नए जीवन के अपने प्रथम फल का पालन करने के लिए आमंत्रित करता है।

ईस्टर: उस रविवार के पुनरुत्थान का उत्सव है

ईस्टर ईस्टर और होली दोनों रंगों के साथ मनाए जाते हैं

आज, हम अक्सर यीशु के पुनरुत्थान को ईस्टर कहते हैं, और ईस्टर ईतवार को उस रविवार की स्मरण दिलाता है, जिस दिन वह जी उठा था। कई लोग नए जीवन के प्रतीकों को रंगाई पुताई करते हुए ईस्टर के त्योहार को मनाते हैं, जैसे घरों की। जैसे हम होली को रंग के साथ मनाते हैं, वैसे ही ईस्टर को भी मनाया जाता है। जैसा कि होली नए आरम्भ का उत्सव मनाना है, ठीक वैसा ही ईस्टर के साथ है। ईस्टर मनाने का विशेष तरीका उतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। प्रथम फल की पूर्ति के रूप में यीशु का पुनरुत्थान और उससे प्राप्त होने वाले लाभों को प्राप्त करना अधिक महत्वपूर्ण है।

हम इसे सप्ताह में दी हुई समयरेखा में देखते हैं:

 यीशु ने प्रथम फल के त्योहर पर मृत्यु में से जी उठा – मृत्यु से नए जीवन का प्रस्ताव आपको और मुझे दिया गया है।

गुड फ्राइडेका उत्तर दिया गया

यह हमारे प्रश्न ‘गुड फ्राइडे’ अर्थात् शुभ शुक्रवार ‘अच्छा’ क्यों है के बारे में उत्तर देता है।

9किन्तु हम यह देखते हैं कि वह यीशु जिसको थोड़े समय के लिए स्वर्गदूतों से नीचे कर दिया गया था, अब उसे महिमा और आदर का मुकुट पहनाया गया है क्योंकि उसने मृत्यु की यातना झेली थी। जिससे परमेश्वर के अनुग्रह के कारण वह प्रत्येक के लिए मृत्यु का अनुभव करे।

इब्रानियों 2:9

पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दु:ख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहिने हुए देखते हैं, ताकि परमेश्‍वर के अनुग्रह से वह हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे।

जब यीशु ने ‘मौत का स्वाद चखा’ तो उसने आपके, मेरे और सभी के लिए ऐसा किया। गुड फ्राइडे अर्थात् शुभ शुक्रवार ‘अच्छा’ इसलिए है, क्योंकि यह हमारे लिए अच्छा था।

यीशु के जी उठने पर विचार किया जाना

यीशु ने अपने पुनरुत्थान को प्रमाणित करने के लिए कई दिनों तक स्वयं को जीवित दिखाया, इसे यहाँ नीचे लिपिबद्ध किया गया है। परन्तु शिष्यों पर उसका पहला प्रगटीकरण:

…कहानी सी जान पड़ा

लूका 24:10

इसके लिए यीशु को यह करना पड़ा:

और इस तरह मूसा से प्रारम्भ करके सब नबियों तक और समूचे शास्त्रों में उसके बारे में जो कहा गया था, उसने उसकी व्याख्या करके उन्हें समझाया।

लूका 24:27

और फिर इसके बाद में:

44 फिर उसने उनसे कहा, “ये बातें वे हैं जो मैंने तुमसे तब कही थीं, जब मैं तुम्हारे साथ था। हर वह बात जो मेरे विषय में मूसा की व्यवस्था में नबियों तथा भजनों की पुस्तक में लिखा है, पूरी होनी ही हैं।”

लूका 24:44

हम कैसे सुनिश्चित हो सकते हैं कि यही वास्तव में हमारे लिए सदैव के जीवन को देने के लिए परमेश्वर की योजना है? केवल परमेश्वर ही भविष्य को जानता है। ऋषियों ने सैकड़ों वर्षों पहले संकेत और भविष्यद्वाणियाँ को लिखा था ताकि हम यह सत्यापित कर सकें कि यीशु ने उन्हें पूरा किया है…

जिससे तुम उन बातों की निश्चिंतता को जान लो जो तुम्हें सिखाई गयी हैं।

लूका 1:4

यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में जानकारी पाने के लिए, हम पता लगाते हैं:

1. इब्रानी वेद सृष्टि के बाद से दु:ख भोग सप्ताह को एक नाटकीय रूप में दिखाता है

2. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पुनरुत्थान के प्रमाण।

3. पुनरुत्थान के इस जीवन के उपहार को कैसे प्राप्त किया जाए।

4. भक्ति के माध्यम से यीशु को समझें

5. रामायण की दृष्टि से सुसमाचार।